लौकी की खेती | Calabash Farming | लौकी की खेती से लाभ

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको लौकी की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से लौकी की उन्नत किस्मे को लगाने चाहिए, लौकी की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, लौकी के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, लौकी की बुआई कब करनी चाहिए, लौकी के फसल की सिंचाई कितनी करनी चाहिए, लौकी के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा।

लौकी की खेती | Calabash Farming | लौकी की खेती से लाभ

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लौकी की खेती से संबंधित जानकारी

लौकी की खेती मुख्य रूप से एक बागवानी फसल है जो रबी, खरीफ और जायद तीनों मौसमों में उगाई जाती है। लौकी को घीया और दूधी के नाम से भी जानते हैं। लौकी की खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है। लौकी को समतल खेत, पेड़-पौधे, मचान और छतें बनाकर बहुत आसानी से उगाया जा सकता है।

जब हम हरी सब्जियों की बात करते हैं तो सबसे पहला नाम लौकी का ही आता है। यह मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। विटामिन बी, सी, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम आदि  लौकी में प्रचुर मात्रा में होती है। लौकी मधुमेह, वजन घटाने, पाचन, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण और प्राकृतिक चमक के लिए बहुत फायदेमंद है। अगर आप भी लौकी की खेती से लाभ चाहते हैं तो आपको यहां पर पूरी जानकारी मिलेगी की लौकी कब और कैसे उगाए।

लौकी की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान

लौकी उगाने के लिए जैविक जल धारण वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। लौकी को अम्लीय मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। इसे उगाने के लिए 6.0 से 7.0 पी.एच. वाली मिट्टी इष्टतम मानी जाती है। खेत की जल निकासी ठीक से होनी चाहिए।

लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु अनुकूल मानी जाती है। बीज के अंकुरण के लिए तापमान लगभग 30-35 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। पौधे की वृद्धि के लिए 32 से 38 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है।

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लौकी की प्रमुख प्रजातियां 

काशी गंगा  

लौकी की प्रजाति काशी गंगा की वृद्धि औसत है। इसके तने की गांठें एक दूसरे के काफी करीब होती हैं। इस प्रजाति के लौकी का वजन लगभग 800-900 ग्राम होता है। इस प्रजाति की तुड़ाई आप गर्मियों में 50 दिनों के अंतराल पर और बरसात के मौसम में 55 दिनों के अंतराल पर कर सकते हैं। इस प्रजाति से आप प्रति हेक्टेयर लगभग 44 टन फसल प्राप्त कर सकते हैं।

काशी बहार  

काशी बहार प्रजाति के लौकी 30-32 सेमी लंबे और 7-8 सेमी व्यास के होते हैं। इस प्रजाति के लौकी का वजन 780 ग्राम से 850 ग्राम के बीच होता है। इस प्रजाति से लगभग 52 टन प्रति हेक्टेयर उपज मिलता है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रजाति गर्मी और बरसात दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है।

पूसा नवीन 

पूसा की नई प्रजाति का आकार बेलनाकार है। इस प्रजाति के लौकी का वजन लगभग 550 ग्राम होता है। इस प्रजाति की उपज 35 से 40 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है।

अर्का बहार  

लौकी की इस प्रजाति का आकार मध्यम और चिकना होता है। इस प्रजाति के लौकी का वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है।

पूसा संदेश  

पूसा संदेश प्रजाति के फल गोल आकार के होते हैं। इस प्रजाति के एक लौकी का वजन लगभग 600 ग्राम होता है। ये प्रजाति गर्मियों में 60-65 दिनों और बरसात के मौसम में 55-60 दिनों में तैयार हो जाता है। इस प्रजाति की उपज 32 टन प्रति हेक्टेयर होती है।

पूसा कोमल  

पूसा कोमल प्रजाति के लौकी 70 दिन में तैयार हो जाते हैं। इस प्रजाति का आकार लम्बा होता है। इस प्रजाति की उपज 450-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

नरेंद्र रश्मि  

लौकी की प्रजाति नरेंद्र रश्मी का वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है। इसके फल छोटे, हल्के हरे रंग के होते हैं। इस प्रजाति में प्रति हेक्टेयर 30 टन की उपज प्राप्त हो सकती है।

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लौकी के खेत की तैयारी

लौकी की खेती के लिए भूमि तैयार करते समय खेतों में प्रति हेक्टेयर 8-10 टन गोबर की खाद और 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा का छिड़काव करना चाहिए। खाद डालने के बाद खेत की जोरदार और गहरी जुताई करने के बाद पालेक कर दें। जुताई के 7-8 दिन बाद एक बार और जुताई कर दें। फिर इसके बाद कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगाकर जमीन को समतल कर दें।

लौकी के पौधों के रोपाई का सही समय और तरीका

हाइब्रिड बीजों को कंपनियों द्वारा प्रसंस्करण के बाद भेजा जाता है, इसलिए प्रसंस्करण की कोई जरूरत नहीं होती है। इसकी सीधे बुआई होती है। अगर आपने घर पर लौकी के बीज तैयार किए हैं तो उन्हें उपचारित जरूर करें। बुआई से पहले लौकी के बीज को 2 ग्राम कार्बोनडाज़िम प्रति किलोग्राम बीज के दर से उपचारित करें।

लौकी बोते समय रोपण दूरी 60 सेमी रखें। पंक्ति की दूरी 150 से 180 सेमी के बीच बनाए रखें। लौकी के बीजों को 1-2 सेमी की गहराई तक बोयें। 1 हेक्टेयर लौकी उगाने के लिए 1 से 1.5 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है।

खरीफ (बरसात का मौसम) में बुआई का समय 1 जून से 31 जुलाई तक है। फसल की अवधि 45 से 120 दिनों तक होती है। जायद (ग्रीष्म) में बुआई की अवधि 10 जनवरी से 31 मार्च तक, तुड़ाई की अवधि 45 से 120 दिन तक होती है।रबी की बुआई का समय सितम्बर-अक्टूबर है।

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लौकी के पौधों की सिंचाई

जायद के पौधों को 8-10 दिन के अंतराल पर पानी दें। ख़रीफ़ के पौधों को वर्षा के अनुसार और वर्षा न होने पर भी पानी दिया जाता है। रबी फसलों की सिंचाई खेत की नमी के आधार पर 10 से 15 दिन के अंतराल पर करें।

लौकी के खेत में उवर्रक की मात्रा

लौकी उगाने के लिए खेत तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर खेत में 8-10 टन गोबर की खाद और 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा डालना चाहिए। लौकी की बुआई करते समय प्रति हेक्टेयर खेत में 50 किलोग्राम डीएपी, 25 किलोग्राम यूरिया, 50 किलोग्राम पोटाश, 8 किलोग्राम जायम और 10 किलोग्राम कार्बोफुरान डालें। लौकी रोपण के 20-25 दिन बाद 10 ग्राम एन.पी.के. 19:19:19 को 1 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर फसल पर छिड़काव करें। लौकी की बुआई के 40-45 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम यूरिया डालें।

प्रति हेक्टेयर लौकी लगाने के 50-60 दिन बाद 10 ग्राम एन.पी.के. 0:52:34 और 2 मिलीलीटर टाटा बहार प्रति 1 लीटर पानी में डालें और प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

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लौकी के खेत में खरपतवार नियंत्रण

लौकी के पौधों को भरपूर मात्रा में उर्वरक मिलता है इसलिए इनके पौधों पर खरपतवार नियंत्रण पर अधिक ध्यान देना चाहिए। खरपतवार उगने से पौधों को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक नहीं मिल पाता है। लौकी के खेत में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों तरीकों से किया जा सकता है। प्राकृतिक रूप से खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज बोने से पहले तथा बीज बोने के तुरंत बाद ब्यूटाक्लोर का छिड़काव करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण से पौधे अच्छे से बढ़ते हैं और उपज भी अच्छी होती है।

लौकी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

लाल कीडा  

पौधो पर दो पत्तियां निकलने के बाद इस कीट का प्रकोप चालू हो जाता है। यह कीट पत्तियों व फूलों को खा कर फसल को खराब कर देता है। यह कीट लाल रंग व इल्ली हल्के पीले रंग की होती है। इस कीट का सिर भूरे रंग का होता है। इसे रोग से फसलों को बचाने के लिए कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि जमीन में छिपे कीड़े-मकोड़े और उनके अंडे सतह पर आ जाएं और सूरज या पक्षियों की गर्मी से खत्म हो जाएं।

कार्बोफ्यूरान 3% दानेदार 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल से 3-4 सेमी की दूरी पर डालें। खेत में दूर से पानी लगाकर सिंचाई करें।जब कीटों की संख्या ज्यादा हो तो डायेक्लोरवास 76 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़क दें।

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फल मक्खी 

परिपक्व फल मक्खियाँ लाल भूरे या भूरे रंग की होती हैं और घरेलू मक्खियों के आकार की होती हैं। इनके सिर पर काले या सफेद धब्बे होते हैं। इस कीट की मादा फल में छेद करके अंदर अंडे देती है। अंडों से कैटरपिलर निकलते हैं और गूदा खाते हैं, जिससे फल सड़ जाते हैं। यह कीट बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों पर अधिक फैलता है। खराब एवं गिरे हुए फलों को यथाशीघ्र खत्म कर दें। फल जमीन के संपर्क में हैं तो उन्हें समय के अनुसार पलटते रहना चाहिए। पौधे को रोग के प्रकोप से बचाने के लिए मैलाथियान 50 ईयू की 50 मि.ली. और 500 ग्राम गुड़ या शिरा को 50 लीटर पानी में मिलाकर डालें। एक सप्ताह बाद पुनः छिड़काव करें।

चूर्णी फफूंदी  

यह रोग एक फफूंद के कारण होता है और फसलों में पाया जाता है। पत्तियों और तनों पर सफेद धब्बे और गोलाकार धब्बे देखे जा सकते हैं। यह बाद में भूरे रंग का हो जाएगा। इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियाँ पीली पड़कर खराब हो जाती हैं। इस रोग के फैलने से पौधों की वृद्धि बाधित हो जाती है।इस रोग से रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जमीन में गाड़ दें या आग लगाकर जला दें। इस प्रकोप से फसल को बचाने के लिए 10-15 दिन के अंतराल पर घुलनशील गंधक जैसे 2% कैराथेन या 0.3% सल्फेक्स जैसे फफूंदनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।

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उकठा (म्लानि)  

इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियाँ मरकर गिर जाती हैं तथा पत्तियों के किनारे पूरी तरह जल जाते है। इस रोग की रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए। बीजों को वेनलेट या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

लौकी के फलों की तुड़ाई पैदावार और लाभ

लौकी के फल बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। जब फल उपयुक्त आकार और रूप में आ जाए तो इसकी तुड़ाई की जा सकती है। फल तोड़ते समय यह सुनिश्चित करें कि आप उसे डंठल से कुछ दूरी पर किसी नुकीली वस्तु से काटें। इससे फल कुछ समय तक ताजा रहता है। कटाई के तुरंत बाद फलों को पैक करके बाजार में बिक्री के लिए भेज देना चाहिए। फलों की तुड़ाई शाम और सुबह दोनों समय कर सकते है।

अगर लौकी की फसल की पैदावार की बात करें तो फसल दो से तीन महीने में तैयार हो जाएगी। लौकी उगाने में कम मेहनत और कम लागत में अच्छी पैदावार होती है। प्रति हेक्टेयर लगभग 350-500 क्विंटल उपज प्राप्त हो जाती है। लौकी का बाजार भाव 5 से 10 रुपए प्रति किलो के बीच है, जिससे किसान भाई प्रति हेक्टेयर 2 से 2.5 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।

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