दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको तीसी की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से तीसी की उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, तीसी की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, तीसी के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, तीसी की बुआई कब करनी चाहिए, तीसी के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, तीसी के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा
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तीसी की खेती से सम्बंधित जानकारी
तीसी की खेती झारखंड राज्य में रबी की मुख्य तिलहनी फसल है। तीसी एक तरह का तिलहन एवं रेशेदार पौधा है। बाजार में इसकी मांग सबसे ज्यादा है। तीसी के फसलों के बीजों का उपयोग तेल उत्पादन के लिए किया जाता है। तीसी की फसल में 35 से 45 प्रतिशत तेल होता है। इसके अलावा तीसी पौधे का उपयोग औषधि में भी किया जाता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, तीसी में उत्पादित तेल का केवल 20 फीसदी ही किसान इस्तेमाल करते हैं। शेष, अर्थात् 60 प्रतिशत का उपयोग उद्योग व्यवसाय में पेंट, वार्निश तैलीय कपड़ा, लिनोलियम, पैड इंक और प्रिंटिंग इंक के उत्पादन के लिए किया जाता है।
इसके अलावा तीसी के तेल को खल्ली दुधारू गायों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, यही कारण है कि कई पशुपालक तीसी के तेल को खल्ली खाद के रूप में उपयोग करते हैं, क्योंकि इसके तेल में 5 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है।
तीसी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
तीसी की फसल रबी के मौसम में होती है। इसकी बुआई अक्टूबर से नवंबर के महीने में होती है और मार्च से अप्रैल के महीने में पूरी तरह से तैयार होकर बिक्री के लिए तैयार हो जाती है। इस समय किसानों के खेतों में तीसी के फसल की कटाई लगभग पूरी हो चुकी होती है।
तीसी के पौधों की सिंचाई
तीसी की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। इसके लिए एक या दो बार पानी देना काफी है।
तीसी फसल के लिए कीट नियंत्रण
तीसी के पौधों में मक्खियों जैसे बड़े कीट होते हैं, इसलिए किसानों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। इसकी रोकथाम के लिए किसानों को अपनी फसलों में प्रभेद टी 397, श्वेता, शुभ्रा, लक्ष्मी, नीला रश्मी और मुक्ता कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
कटाई का समय
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