मक्के की खेती | Maize Farming | मक्के की खेती से लाभ

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको मक्के की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से मक्के की उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, मक्के की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, मक्के के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, मक्के की बुआई कब करनी चाहिए, मक्के के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, मक्के के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा

मक्के की खेती | Maize Farming | मक्के की खेती से लाभ

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मक्के की खेती से सम्बंधित जानकारी

हमारे देश में गेहूं के बाद मक्का सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल है। मक्के की खेती के अलग-अलग उपयोग हैं। यह लोगों और जानवरों के लिए भोजन के रूप में काम करता है। इसके अलावा व्यापारिक दृष्टि से भी इसका काफी महत्व है। मक्के को 2700 मीटर तक के ऊंचे पहाड़ी और मैदानी दोनों क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। भारत में मक्के की कई अलग प्रजातियां उगाई जाती हैं, जो जलवायु के कारण अन्य देशों में शायद ही संभव हो पाती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिन का अच्छा स्रोत है जो मानव शरीर को ऊर्जा से भर देता है।

इसमें जिंक, तांबा, फास्फोरस, मैग्नीशियम, लोहा और मैंगनीज जैसे खनिज भी प्रचुर मात्रा में हैं। मक्का एक खरीफ़ फसल है, लेकिन सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता के साथ इसे रबी और खरीफ़ की शुरुआती फसल के रूप में उगाया जाता है। मक्के की मांग अधिक है इसलिए इसे बेचना आसान है। यदि किसान भाई मक्का उगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं तो यह पोस्ट मक्का उगाने के तरीके के बारे में जानकारी प्रदान करेगी। इसके अलावा मक्के की प्रजाति के बारे में जानकारी आपको अच्छी फसल प्राप्त करने में मदद करेगी।

मक्के की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान

मक्के के अच्छे उपज के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान की आवश्यकता होती है। यह उत्पाद उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ता है। पौधे को सामान्य तापमान की जरुरत होती है। पौधों की वृद्धि के लिए प्रारंभिक आर्द्रता की जरुरत होती है, पौधों की वृद्धि के लिए 18 से 23 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त माना जाता है और पौधों की विकास के लिए 28 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त माना जाता है।

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मक्के की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

मक्का आमतौर पर किसी भी भूमि पर उगाई जा सकती है, लेकिन अच्छी गुणवत्ता और उच्च पैदावार के लिए रेतीली दोमट और भारी मिट्टी की जरुरत होती है। इसके अलावा मिट्टी में अच्छी जल निकासी होनी चाहिए। मक्का उगाने के लिए लवणीय और क्षारीय मिट्टी अनुपयुक्त मानी जाती है।

मक्का के विभिन्न प्रजातियां

मक्के की प्रजाति को उपज और उगने के समय के आधार पर 4 भागों में विभाजित किया गया था।

मक्के की अधिक जल्द समय में तैयार होने वाली प्रजाति (75 दिन से कम समय)  

• जवाहर मक्का-8

• विवेक-43

• विवेक-42

• विवेक-4

• विवेक-17

• प्रताप हाइब्रिड मक्का-1

85 दिन से कम समय में तैयार होने वाली मक्के की प्रजाति  

• डीएचएम-107

• डीएचएम-109

• जवाहर मक्का-12

• अमर

• आजाद कमल

• पंत संकुल मक्का-3

• चन्द्रमणी, प्रताप-3

• विकास मक्का-421

• हिम-129 

• पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-1

• पूसा अरली हाइब्रिड 

• मक्का-2

• प्रकाश

• पी.एम.एच-5

• प्रो-368

• एक्स-3342

• डीके सी-7074

• जेकेएमएच-175

• हाईशेल एवं बायो-9637

मक्के की सामान्य समय (95 दिन) में तैयार होने वाली प्रजाति

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• जवाहर मक्का-216

• एचएम-10

• एचएम-4

• प्रताप-5

• पी-3441

• एनके-21

• केएमएच-3426 

• केएमएच-3712

• एनएमएच-803

• बिस्को-2418

अधिक देरी से (95 दिन से अधिक) पकने वाली मक्के की प्रजाति  

• गंगा- 11

• त्रिसुलता

• डेक्कन- 101

• डेक्कन-103

• डेक्कन-105

• एचएम- 11

• एचक्यूपीएम- 4

• सरताज, प्रो- 311

• बायो- 9681

• सीड टैक-2324

• बिस्को- 855

• एनके 6240

• एसएमएच- 3904

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मक्के के खेत को कैसे तैयार करें

खेत में मक्के के बीज बोने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। ऐसा करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी होगी। इस समय के बाद मैदान को खुला छोड़ दें। मक्के के अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी को पर्याप्त रूप से उर्वरित किया जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए खेत में 6-8 टन पुरानी गोबर की खाद डालें और खेत की एक तिरछी जुताई करें ताकि खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाए।

यदि मिट्टी में जिंक की कमी हो तो वर्षा ऋतु से पहले 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट खेत में डालना चाहिए। उर्वरक एवं खाद प्रजाति के आधार पर चयन करें। फिर नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा रोपण के समय, दूसरी बार रोपण के एक महीने बाद और आखिरी बार फूल आने के समय डालें।

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बीजों की रोपाई का सही समय और तरीका

मक्के के खेत में बीज बोने से पहले उन्हें उचित रूप से उपचारित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विकास के दौरान बीज बीमारी से क्षतिग्रस्त न हों। ऐसा करने के लिए बीजों को 3 ग्राम प्रति 1 किलोग्राम बीज की दर से थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। यह उपचार बीजों को फफूंद से बचाता है। बीजों को मिट्टी के कीड़ों से बचाने के लिए उन्हें थायोमेथोक्जाम या इमिडाक्लोप्रिड से 1-2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करना चाहिए।

मक्के के बीजों को सीडर से भी बोया जा सकता है। खेत में बीज बोने के लिए कतारें 75 सेमी की दूरी पर और प्रत्येक बीज के बीच 22 सेमी की दूरी बनाकर रखें। एक हेक्टेयर खेत में लगभग 21,000 मक्के के पौधे लगाए जा सकते हैं।

मक्के के बीज की बुआई साल के अलग-अलग समय में की जा सकती है। आप चाहें तो मार्च के अंत तक, अक्टूबर से नवंबर तक या जनवरी से फरवरी तक भी बीज बो सकते हैं।

मक्के के पौधों की सिंचाई

मक्के को पूर्ण परिपक्वता तक पहुंचने के लिए 400 से 600 मिमी पानी की जरुरत होती है। बीज बोने के तुरंत बाद पहला पानी देना चाहिए। बाद में जब बीज पौधे में लगने लगे तो पानी देना जरूरी हो जाता है। मक्के की फसल की सिंचाई बुआई के समय के अनुसार की जाती है। इसके अलावा मक्के की फसल को भी खरपतवार से बचाने की जरूरत है। खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार नियंत्रण विधियों का प्रयोग किया जाता है। मक्के के खेतों में खरपतवारों को प्राकृतिक रूप से निराई-गुड़ाई द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए। यदि खरपतवार दिखाई दें तो उन्हें 20 से 25 दिनों के भीतर हटा देना चाहिए।

अतिरिक्त कमाई

मक्के की फसल के दौरान आप मक्के के खेत में अन्य फसलें उगाकर भी अतिरिक्त आय कमा सकते हैं। यहां आप मूंग, तिल, सोयाबीन, बोरो या बरबटी, उड़द और बीन्स जैसी फसलें उगा सकते हैं। जिससे किसानों को आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।

मक्के के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

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 तना मक्खी रोग  

इस प्रकार की बीमारी का प्रसार वसंत ऋतु की फसलों में देखा जा सकता है। तना मक्खी रोग पौधों पर हमला करता है और तने को खोखला कर देता है और पौधा पूरी तरह खराब हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए प्रति लीटर पानी में 2-3 मिलीलीटर फिप्रोनिल मिलाकर छिड़काव करें।

 तना भेदक सुंडी रोग  

इस प्रकार की बीमारी तने में प्रवेश करती है, इसे अंदर से खोखला करती है और सूखने का कारण बनती है। इससे तना सूख जाता है और खराब हो जाता है। क्विनालफॉस 30 या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल की सही मात्रा का छिड़काव कर इस रोग से बचाव किया जा सकता है।

भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता रोग 

इस प्रकार के रोग से पौधे को अधिक नुकसान होता है। इस रोग से पौधे की पत्तियों पर चौड़ी हल्की हरी या पीली धारियां दिखाई देने लगती हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, यह धारी लाल हो जाती है और सुबह के समय फफूंद पत्तियों पर राख के रूप में दिखाई देती है। मेटालेक्सिल या मेंकोजेब की सही मात्रा का छिड़काव करके इस रोग को रोका जा सकता है।

पत्ती झुलसा कीट रोग  

यह कीट रोग पत्तियों के नीचे से प्रारंभ होकर ऊपर की ओर आक्रमण करता है। इस रोग से संक्रमित होने पर पत्तियों की निचली सतह पर लंबे भूरे अंडाकार धब्बे देखे जा सकते हैं। मेन्कोजेब या प्रोबिनब की सही मात्रा का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

इसके अलावा भी मक्के के पौधों में कई बीमारियाँ होती हैं, जैसे: जीवाणु तना सड़न, रतुआ, सफेद लट, सैनिक सुंडी, कटुआ, पत्ती लपेटक सुंडी आदि |

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मक्के की फसल की कटाई उस प्रजाति के आधार पर की जाती है। कटाई के समय फल में 25% नमी होता है। मक्के की कटाई के बाद दाने निकालने के लिए उसकी मड़ाई की जाती है। दाने निकालने के लिए सेलर का उपयोग किया जाता है। आप थ्रेशर से भी दाने निकाल सकते हैं। मक्के की कटाई और मड़ाई के बाद निकाले गए दानों को पूरी तरह धूप में सुखाकर संग्रहित किया जाता है।

एक हेक्टेयर भूखंड पर सामान्य प्रजाति की उपज 35 से 55 क्विंटल के बीच होती है, जबकि संकर प्रजाति की उपज 55 से 65 क्विंटल के बीच होती है। बाजार में मक्के की कीमत 15 से 20 रुपये के बीच है। इसकी वजह से किसान भाई खेती करके अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।


   

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