दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको सरसो की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से सरसो के उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, सरसो की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, सरसो के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, सरसो की बुआई कब करनी चाहिए, सरसो के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, सरसो के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा।
सरसों की खेती कैसे करे (how to cultivate mustard)
सरसों के मुख्य प्रकार
भारत में सरसों के मुख्य दो प्रकार पाया जाता है। एक कली सरसों और एक पीली सरसों के नाम से जाना जाता है। जिसकी खेती किसान भाई मिट्टी और मौसम के अनुसार करते है। ज्यादातर किसान भाई काले सरसों की खेती करते है।
काली सरसों
काली सरसों पीली सरसों के तुलना में बड़े और कड़े आकार के होते है। इस सरसों का रंग गहरे भूरे से गहरे काले होते है। इस सरसों की खेती अधिक उपज के लिए करते है।
पीली सरसों
पीली सरसों काली सरसों के तुलना आकर में छोटे होते है। और स्वाद में भी बहुत अंतर होता है। काले सरसों के तेल को खाने में प्रियोग किया जाता है। और पीले सरसों के तेल को आचार और तड़का लगाने में प्रयोग किया जाता है।
सरसों की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
सरसों की खेती बलुआई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। और इसकी खेती करने के लिए सर्दियों का मौसम अच्छा माना जाता है। इसके पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए 20 से 24 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। सरसों में फुल निकलने के दौरान वर्षा और छायादार का मौसम हानिकारक होता है।
सरसों की खेती करने के लिए सरसों की उन्नत किस्में
- पूसा बोल्ड
- अरावली (आर.ऍन. 393)
- वसुंधरा (R.H. 9304)
पूसा बोल्ड
इस तरह के सरसों के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 135 दिन का समय लगता है। इसकी फलिया मोती होती है। और इसके दाने से 35 प्रतिशत तक तेल निकलता है। इसके प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 22 क्विंटल तक उपज आसानी से उपजाया जाता है।
अरावली (आर.ऍन. 393)
इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 140 दिन का समय लगता है। इसके पौधे मध्य ऊंचाई के होते है। और इसके बीज 43 प्रतिसत तक तेल निकलता है। इसके एक हेक्टेयर के खेत से 24 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।
वसुंधरा (R.H. 9304)
इस तरह के सरसों के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 125 दिन का समय लगता है। और इसके पौधे की ऊंचाई 185 cm तक होता है। और इसके दाने से 45 प्रतिशत तेल निकलता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 25 क्विंटल तक आसानी से उपजाया है।
इसके अलावा सरसों के स्वर्ण ज्योति (आर.एच. 9802), बायो 902 (पूसा जय किसान) और जगन्नाथ (बी.एस.5) आदि की खेती भी की जाती है।
सरसों की खेती करने के लिए खेत की तैयारी
सरसों को खेत में लगने से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी की जाती है। जिससे सरसों की अच्छी उपज किसान भाई को मिल सके । इसकी खेती के लिया भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसलिए खेती अच्छी तरह गहरी जुताई करनी चाहिए और खेत की कुछ दिन के लिए खुला छोड़ देनी चाहिए जिससे पहले के फसल के अवशेष पूरी तरह नष्ट हो जाए और मिट्टी में अच्छी तरह धूप लग जाए। और रोटावेटर को लगा कर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई करनी चाहिए और खेत में पाटा लगा कर खेत को समतल बना लेना चाहिए।
सरसों की बुआई के लिए सही समय और तरीका
सरसों की बुआई सितंबर और अक्टूबर महीने के बीच में की जाती है। ऐसे सिंचित क्षेत्र में अक्टूबर के अंत तक भी इसकी बुआई की जाती है। सरसों की बुआई के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। और इसकी बुआई एक कतारों से की जाती है।इसलिए 30CM की दूरी रखते हुए कतार को बना लिया जाता है। और उस कतार में 10 CM की निश्चित दूरी रखते हुए सरसों के बीज की लगाया जाता है। बीज की बुआई करने से पहले बीज को मैन्कोजेब की उचित मात्रा में उपचारित किया जाता है। इसके बाद खेत की नमी के अनुसार बीज को गहराई से लगाया जाता है। एक हेक्टेयर के खेत के हिसाब से 4 से 5 KG बीज की आवश्यकता होती है।
सरसों की खेती के लिए उर्वरकऔर खाद की उचित मात्रा
सरसों की अच्छी उपज के लिए खेत में उचित मात्रा में उर्वरक और खाद को डाल जाता है। खेत की जुताई के समय एक हेक्टेयर के खेत के हिसाब से 4 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डाल कर अच्छी तरह मिट्टी और गोबर को मिलाया जाता है। और रसायन खाद के रूप में 80 KG नत्रजन, 60 KG गंधक, 375 KG जिप्सम और 35KG फास्फोरस की मात्रा को खेत में डाला जाता है। फास्फोरस की पूरी मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा को पहली सिंचाई के समय और आधी मात्रा को जुताई के समय डाला जाता है।
सरसों के फसल की सिंचाई
सरसों के फसल की अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसकी बुआई सर्दी के मौसम में की जाती है। लेकिन सही समय पे सरसों की सिंचाई करने से अच्छा उपज मिलता है। इसलिए पहली सिंचाई बीज की बुआई के तुरंत बाद करना चाहिए। और दूसरी सिंचाई 70 से 75 दिन के बाद करनी चाहिए। यदि खेत में पानी की आवश्कता हो तब करनी चाहिए।
सरसों के फसल से खरपतवार का नियंत्रण
सरसों की अच्छी विकास के लिए खरपतवार नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक और रसायनिक दोनो तरीके को अपनाया जाता है।
प्राकृतिक तरीका से खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई -गुड़ाई कर खरपतवार को निकाला जाता है। इसकी पहली गुड़ाई 25 दिन के अंतराल में कर देना चाहिए। और बाद की गुड़ाई समय समय पर जब खेत में खरपतवार दिखाई देने लगे तब करनी चाहिए।
रसायनिक तरीका से खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूम्लोरेलिन की उचित मात्रा में सिंचाई के समय छिड़काव कर खरपतवार को नियंत्रित किया जाता है।
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