अरहर की खेती | Pigeon (Arhar) Farming

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको अरहर की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से अरहर की उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, अरहर की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, अरहर के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, अरहर की बुआई कब करनी चाहिए, अरहर के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, अरहर के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा
अरहर की खेती | Pigeon (Arhar) Farming
अरहर की खेती से सम्बंधित जानकारी

प्रोटीन हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। जब मानव शरीर को पर्याप्त प्रोटीन नहीं मिलता है तो हमारे शरीर का मानसिक और शारीरिक विकास रुक जाता है। अरहर की दाल को प्रोटीन का उच्चतम स्रोत माना जाता है। हमारे देश में अरहर दाल को ,तुर,रेड ग्राम, पिजन पि के नाम से भी जाना जाता है। अरहर दाल को भारत और दक्षिण अफ्रीका का मूल जन्म स्थान माना जाता है। प्रोटीन के अच्छे स्रोत के रूप में अरहर दाल का सेवन लगभग हर घर में किया जाता है।

अरहर की दाल में 21 से 22 प्रतिशत प्रोटीन होता है। अरहर दाल का बाजार क़ीमत भी काफी अच्छा है। इससे किसान अरहर की खेती से अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। अगर आप भी किसान हैं और अरहर की खेती करना चाहते हैं तो इस पोस्ट में आप अरहर की खेती कैसे करें और अरहर की कीमत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी पाएंगे।

अरहर की खेती

भारतीय किसान वर्षों से बाजरा, ज्वार, उर्द और कपास के साथ-साथ अरहर भी उगा रहे हैं। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए कृषि वैज्ञानिक अरहर उगाने की सलाह देते हैं। जब इसे फलियां की तरह उगाया जाता है तो सूखी लकड़ी का उपयोग टोकरियों, पुआल, छत और यहां तक कि ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है।

भारत के उत्तर प्रदेश के लगभग 20% क्षेत्र में अरहर की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश में फ़तेहपुर, कानपुर, हमीरपुर, जालौन और प्रतापगढ़ ऐसे जिले हैं जो अरहर का अधिक उत्पादन करते हैं।

अरहर की खेती करने के लिए उचित जलवायु और तापमान 

अरहर की पौधे आर्द्र और शुष्क जलवायु में पाए जाते है। इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए आर्द्र जलवायु की जरुरत होती है। फूल, फलियाँ और पौधों के बीज भी इस जलवायु में अच्छे से पनपते हैं। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। इसे 75-100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।

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अरहर की खेती करने के लिए उचित भूमि का चयन

यदि किसान अरहर की अच्छी फसल करना चाहते हैं तो उन्हें सही भूमि का चयन करना होगा। कार्बनिक पदार्थ/जीवांश से भरपूर रेतीली या दोमट मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त होती है। अच्छी जल निकासी वाली ढलानें खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं।

लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी खेती के लिए अनुपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा यह फसल काली मिट्टी वाले खेतों में भी सफलतापूर्वक उगाई जाती है। पर्याप्त पानी और चूने की भंडारण क्षमता वाले स्थान अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।

अरहर के खेत की तैयारी

अरहर की सफल फसल के लिए खेत को ठीक से तैयार करना चाहिए। सबसे पहले जमीन की अच्छी तरह जुताई कर लें। फिर कल्टीवेटर से 2 से 3 बार जुताई कर दें। इस समय के बाद खेत को खुला छोड़ दें। इससे कृषि योग्य मिट्टी में कीड़े सूरज की रोशनी से मर जाते हैं। फिर प्राकृतिक गोबर के खाद को खेत में फैलाया जाता है और अच्छी तरह मिश्रित होने तक जुताई की जाती है। इससे गोबर खेत में अच्छी तरह मिल जाता है। बाद में जमीन को समतल करने के बाद खेत में फिर से जुताई की जाती है। इस प्रकार खेत फसल उगाने के लिए तैयार हो जाता है।

अरहर की विभिन्न प्रजातियाँ

पारस  

यह अरहर की एक शुरुआती प्रजाति है और उत्तर प्रदेश और पश्चिमी क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस फसल की बुआई जून के प्रथम सप्ताह में करनी चाहिए। अरहर की यह प्रजाति 130 से 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पारस प्रजाति 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज देती है।

पूसा 992 

इस प्रजाति के पौधे भी अगेती प्रजाति के हैं और इस प्रजाति के उत्पादों को 1 से 10 जून के बीच में लगाना चाहिए। यह उकठा प्रजाति के प्रति प्रतिरोधी है। इस प्रजाति की उपज 150-160 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

टा 21  

इस प्रजाति की अरहर की दाल अप्रैल के प्रथम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह तक रोपण के लिए उपयुक्त मानी जाती है। टा 21 प्रजाति उत्तर प्रदेश में लगभग हर जगह उगाई जाती है। इस प्रजाति को विकसित होने में 160 से 170 दिन का समय लगता है। इसकी उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

UPAS 120  

अरहर की यह प्रजाति भी लगभग हर जगह उगाई जाती है। इस फसल की बुआई जून के प्रथम सप्ताह में करना सही माना जाता है। यह प्रजाति अन्य अगेती प्रजाति की तुलना में तेजी से तैयार होती है। फसल को तैयार होने में 130-140 दिन का समय लगता है। इसकी उत्पादकता 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है।

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अरहर की देर से पकने वाली प्रजातियाँ

अरहर देर से बोने वाली प्रजातियों में भी आती है और ये प्रजातियाँ तैयार होने में 260 से 280 दिन का समय लेती है। देर से पकने वाली प्रजातियों को शुरुआती प्रजातियों की तुलना में परिपक्व होने में अधिक समय लगता है, लेकिन पैदावार थोड़ी अधिक होती है। इस प्रजाति का उत्पाद आसानी से 25-30 क्विंटल उपज देता है।

देर से बोने वाली प्रजातियाँ : बहार , अमर, नरेंद्र अरहर -1, नरेंद्र अरहर -2, पूसा- 9, मालवीय विकास (MA-4) मालवीय चमत्कार (MA-6), PDA-11, आज़ाद, इन प्रजातियों में बाँझ रोग, उकठा रोग के लगने का डर नहीं होता है |

अरहर की बुवाई का सही समय

अरहर की अच्छी फसल सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। अरहर की बुआई अगेती एवं सिंचित क्षेत्रों में 15 जून तक तथा देर से पकने वाली प्रजातियों में जुलाई तक कर देनी चाहिए। सरल शब्दों में जो फसल अगले 270 दिनों में तैयार हो जाएगी उसे जुलाई में लगाया जाना चाहिए। टा-21 प्रजाति की अच्छी फसल के लिए बुआई 15 अप्रैल से पहले कर लेनी चाहिए। इन नियमों का पालन करने पर बुआई करने से तीन प्रकार के लाभ मिलते हैं।

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  • फसल नवंबर के मध्य में तैयार हो जाती है, इसलिए गेहूं की बुआई में कोई देरी नहीं होती है।
  • पैदावार जून में बोई जाने वाली ख़रीफ़ फसल की तुलना में अधिक है।
  • पर्वत श्रृंखलाओं पर बोने से अच्छी फसल पैदा करते हैं।

अरहर के बीजो को कैसे उपचारित करें

सबसे पहले 1 किलो बीज को 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बिंडाजिम या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा और 1 ग्राम कारबाक्सिन या कार्बिंडाजिम के मिश्रण से उपचारित करना चाहिए। खेत में बोने से पहले प्रत्येक बीज को अरहर के राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।

फिर प्रति 10 किलो बीज पर 1 पैकेट छिड़कना चाहिए। उचित उपचार के बाद बीजों को तुरंत रोपना चाहिए। बहुत अधिक धूप से कल्चर में बैक्टीरिया के मरने का खतरा बढ़ जाता है। इस फसल का उपयोग वहीं करना चाहिए जहां सबसे पहली बार अरहर लगाई गई हो।

अरहर के बीजों की बुवाई का तरीका

एक बार जब खेत ठीक से तैयार हो जाए तो बीज बोने के लिए सही प्रजाति और मौसम पर विचार करना चाहिए। प्रत्येक बीज को बोने के लिए बीजों के बीच पर्याप्त जगह होनी चाहिए। बुआई के समय मेड़ विधि का प्रयोग करने से पैदावार अच्छी होती है।

खेत में बीज बोने के लिए 12-15 किलोग्राम अगेती प्रजाति के बीज और 15-18 किलोग्राम देर वाली प्रजाति के बीज उपयुक्त माने जाते हैं। बुआई करते समय अलग-अलग बीजों के बीच 20 सेमी और अलग-अलग पंक्तियों के बीच 60 सेमी की दूरी बनाए रखें।

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अरहर की खेती करने के लिए खाद तथा उवर्रक की सही मात्रा

यदि आप अरहर की अच्छी फसल पाना चाहते हैं, तो आपको 10-15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-45 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम सल्फर महत्वपूर्ण है। अरहर की उपज बढ़ाने के लिए फॉस्फोरस युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट का उपयोग जरूरी है।

सिंगिल सुपर फास्फेट प्रति हे. 250 कि.ग्रा. या 100 कि.ग्रा. डाई अमोनियम फास्फेट तथा 20 किग्रा. सल्फर को कतारों में लगाते समय चोंगा या नाई का प्रयोग करना चाहिए। यह उर्वरक के बीजों को एक दूसरे को छूने से रोकने के लिए है।

अरहर की खेतों में सिंचाई का तरीका

अरहर की बुआई असिंचित तरीके से की जाती है। अत: यदि लम्बे समय तक वर्षा न हो तथा फूल आने से पूर्व तथा दाना बनने के समय फसल की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। अच्छी फसल पाने के लिए पर्याप्त जल निकास वाली जगह का होना बहुत आवश्यक है।

अरहर की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

खेत में बुआई के लगभग 60 दिन बाद खरपतवार की उपस्थिति फसल के लिए अधिक हानिकारक हो जाती है। अत: खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निराई-गुड़ाई 25-30 दिन बाद तथा दूसरी 45-60 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई नियंत्रण सबसे उपयुक्त तरीका माना जाता है।

इसके अलावा यदि आवश्यक हो तो खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक तरीकों का भी उपयोग किया जा सकता है। इस प्रयोजन के लिए 1 किलोग्राम पेट्रोलियम जेली को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर या बीज के अंकुरण से पहले 3 किलोग्राम लासो की उचित मात्रा का छिड़काव करके खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।

अरहर की कटाई का सही समय

जब अरहर की फलियां 80 प्रतिशत पककर भूरी हो जाएं तो उनकी कटाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद कटाई के 7-10 दिन बाद जब पौधा पूरी तरह सूख जाए तो अरहर के पौधों को लकड़ी से पीट – पीट कर फलियां अलग कर लेनी चाहिए।

अरहर के बीज निकालने के लिए किसान लाठी और बैलों का उपयोग कर सकते हैं। निकाले गए अरहर दाल दानों को 7-10 दिन तक धूप में सुखाकर भण्डारित करना चाहिए।

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अरहर की पैदावार और कीमत

एक हेक्टेयर क्षेत्र में अरहर की अच्छी प्रजाति से किसान को लगभग 15-20 क्विंटल अरहर की फली, 50-60 क्विंटल लकड़ी और 10-15 क्विंटल भूसा प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश में अरहर दाल का बाजार मूल्य प्रजाति के आधार पर 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक है। बिक्री के माध्यम से किसान अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।


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