चना की खेती | gram cultivation

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको चना की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से चना के उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, चना की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, चना के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, चना की बुआई कब करनी चाहिए, चना के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, चना के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा
चना की खेती | gram cultivation



:- चना की खेती से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी  
चला दलहन फसल में से एक है। चना की खेती हमारे पूरे भारत में की जाती है । पूरे दुनिया में 75 % चना भारत में ही उगाया जाता है । चना हमारे शरीर के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद है । इसमें 60% कार्बोहाइड्रेट और 21% प्रोटीन पाया जाता है । और सुबह सुबह भीगा चना खाने से शरीर में फुर्ती और ताकत बनी रहती है। चना दाल के अलावा अन्य बहुत चीज़ों के रूप में उपयोग किया जाता है। चना दाल का बेसन बना कर पकोड़ी, चटनी, कचोरी और बिस्कुट के रूप में उपयोग किया जाता है। अगर आप भी चना की खेती करने के वारे में सोच रहे है तो ये लेख आपको चना की खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी आपको मिलेगी।

:- चना की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, और तापमान

चना की खेती दोमट मिट्टी में की जाती है जिससे पैदावार अच्छी होती है । चना की खेती करने के लिए मिट्टी का P.H. मान 6 से 8 के मध्य होना चाहिए । चना का पौधा ठंडा जलवायु वाला होता है। इसलिए चना को अक्टूबर और नवम्बर महीने के मध्य में बुआई किया जाता है । चने में अंकुरन के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान को अच्छा माना जाता है। ऐसे चना का पौधा अधिकतम 30 डिग्री सेंटीग्रेट और न्यूनतम 15 डिग्री सेंटीग्रेट तक के ही तापमान को सहन करने की क्षमता होती है ।

:- चना की प्रमुख प्रजाति

चना के प्रमुख दो जिसमे पाई जाती है जिसमे एक देशी और  दूसरी कबूली चना की प्रजाति पाई जाती है ।

:- देसी चना की प्रमुख किस्में 

  • जे.जी. 11
  • जे जी के - 2
  • मक्सीकन बोल्ड 
  • वैभव 
  • इंदिरा चना 
  • हिम 

चना की खेती | gram cultivation

जे.जी. 11 :- इस तरह के चने के किसको को पूरी तरह तैयार होने में 110-120 दिनों का समय लगता है । और इस किस्म को सिंचित और असिंचित दोनो जगहों पर उगाया जाता है। इसके दाने हल्के पीले रंग के होते है। जिससे प्रति हेक्टेयर से 18 से 20 क्विंटल तक उपजाया जा सकता है ।

जे जी के - 2 :- इस तरह के चने के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 90 दिनों का समय लगता है जिससे निकलने वाले दाने हल्के पीले सफ़ेद रंग के होते है। जिससे प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

मेक्सीकन बोल्ड :- इस तरह के चने के किस्मों को पूरी तरह तैयार हो कर 90-100 दोनों में उत्पाद देना शुरू हो जाता है। जिससे निकलने वाले दाने सफ़ेद, चमकदार और आकर्षक  होते है। जिससे प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

वैभव :- इस तरह के चने के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 115-120 दिनों का समय लगता है जिससे निकलने वाले दाने सामान्य दाने से थोड़ा बड़ा और कत्थई रंग के होते है। इसके प्रति हेक्टेयर से 18 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

हिम :- इस तरह के चने के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 150 दिनों का समय लगता है जिससे निकलने वाले दाने हल्के हरे होते है। इसके प्रति हेक्टेयर से 15-18 क्विंटल तक उपजाया जाता हैं।

 इंदिरा चना :- इस तरह के चने के किस्मों को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसे पूरी तरह तैयार होने में 140 दिनों का समय लगता है। जिससे प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक उपजाया जाता हैं।

:- चना की खेती करने के लिए खेत की तैयारी और उर्वरक
चने की खेती करने के लिए खेत को अच्छी तरह गहरी जुताई करके छोड़ दिया जाता है जिससे मिट्टी को अच्छी तरह धूप लग जाती है और मिट्टी में मौजूद हानिकारक तत्व नष्ट हो जाती है और अच्छी उपज होने की संभावना बनी रहती हैं। खेत की पहली जुताई के बाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 6-8 गाड़ी गोबर डाल कर मिट्टी और गोबर को अच्छी तरह से मिला लिया जाता हैं।फिर खेत में पानी डाल कर छोड़ दिया जाता है, और जब खेत में मिट्टी सुखी दिखाई देने लगे तब कल्टीवेटर मसीन की मदद से 2-3 वार जुताई करके पाटा की की मदद से खेत को समतल कर लिया जाता है। इतना करने के बाद खेत में रसायन खाद की जरूरत बहुत कम लगता है। ऐसे जैविक खाद ही खेत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। लेकिन खेत की आखरी जुताई के बाद केवल एक बोरा डी.ए.पी. का इस्तमाल कर सकते है। और 26kg(किलोग्राम) जिप्सम का छिड़काव करे।

:- चना की बुआई के लिए सही समय और सही तरीका
एक हेक्टेयर खेत में देसी चना की बुआई के लिए 90-100kg(किलोग्राम) बीज की आवश्यकता होती है और एक हेक्टेयर खेत में काबुली चना की बुआई के लिए 70-80kg(किलोग्राम) बीज की आवश्यकता होती हैं। इन बीजों को रोपाई से पहले थिरम, कार्बेन्डाजिम, गोमूत्र या मेन्कोजेब की घोल से अच्छी तरह बीज को धोया जाता है जिससे बीज में रोग लगने की संभावना बहुत कम रहती है और बीजों का अंकुरण भी अच्छा से होता है।
चने की बुआई रबी फसल के साथ किया जाता है। सिंचाई और असिंचित जगह पे चने की बुआई के लिए अलग अलग समय होता है जैसे सिंचित जगह पे अक्टूबर से दिसंबर का महीना बुआई के लिए सबसे सही माना जाता है और असिंचित जगह पे सितम्बर से अक्टूबर महीना बुआई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। बीज की अच्छी तरह बुआई के लिए मासिक को अच्छा माना गया है क्योंकि मासिन से बुआई करने से बीज खेत में एक पंक्ति से लगाया जाता है। पंक्ति में इन बीजों को 15-20cm की दूरी पर और 6-7cm की गहराई में लगाया जाता है।

:- चने की खेती करने के लिए पौधे में सिंचाई
चने के फसल में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए 60-70 प्रतिसत बुआई असिंचित जगह पे कि जाती है। चने के फसल में 3-4 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई 25-30 दिन के बाद और इसके बाद की सिंचाई  30 दिन के अंतराल में की जाती है। 

:- चला दलचने के फसल में खरपतवार के नियंत्रण 
चने के फसल से खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों का इस्तमाल कर सकते है। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथालीन का छिड़काव उचित मात्रा में बुआई के बाद किया जाता हैं। प्राकृतिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए 2-3 वार गुड़ाई 25-30 दिन के अंतराल पे किया जाता है।

:- चने के फसल में लगने वाले प्रमुख रोग 
  • फली छेदक रोग
  • झुलसा रोग
  • उखटा रोग
  • रस्ट रोग 
फली छेदक रोग :-  चने में फली छेदक वाले कीड़े से नियंत्रण के लिए लगभग 50 प्रतिशत फूल आने के बाद एनपीवी 250, एलई एक मिलीलीटर दवा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद बीटी 750 मिली लीटर प्रति हैक्टेयर के दर से छिड़काव करना चाहिए। तीसरा छिड़काव आवश्यक होने पर करना चाहिए। 

झुलसा रोग :- झुलसा रोग से चना के फसल को बचाने के लिए 4g मैंकोजेब, 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी या 3g मेटालैक्सिल 8 प्रतिशत मैंकोजेब 64 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव कर दें। जिससे फसल बचा रहता है। नहीं तो 80 प्रतिशत फसल बर्वाद हो जाएगी      

उखटा रोग :- चना के फसल से उकठा रोग को कम करने के लिए तीन साल का फसल चक्र अपनाना जरुरी होता है। इसलिए सरसों या फिर अलसी के साथ चना की अन्तर फसल लगाना चाहिए। और चना के बीज को डब्ल्यू एफएस 4.0 मिलीलीटर, टेबुकोनाजोल 54 प्रतिशत दवा को 10kg (किलोग्राम) बीज के हिसाब से उपचारित करनी चाहिए   

रस्ट रोग :- अलसी या सरसों के साथ चने के बीज को मिला कर खेती करके से भी रस्ट रोग से फसल का बचाव किया जा सकता है। यदि फसल में यह रोग दिखाई देने लहता है, तो कार्बेन्डाजिम 50 WP (एक घुलने वाला पाउडर) का छिड़काव एक लीटर पानी में मिला कर करना चाहिए

:- चने की कटाई, उपज और लाभ 
चने के बुआई के 120-125 दिन बाद फसल कटने के लिए तैयार हो जाता है। जब फसल की पत्ती हल्के पीले रंग का होने लगे तब फसल की कटाई की जाती है। फसल की कटाई के बाद उसे कुछ दिन के लिए खेत में ही छोड़ दे जिससे फसल पूरी तरह सुख जाए, सूखने  के बाद थ्रेसरकी मदद से दाने को अलग कर लिया जाता है। एक हेक्टेयर के खेत से कम से कम 20-25 क्विंटल तक उपजाया जा सकता है। चने का भाव बाजार में 5-8 हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है जिससे किसान भाई को एक हेक्टेयर के खेत के फसल से 80हजार से 1 लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है।

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