मटर की खेती | Pea Farming

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको मटर की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से मटर के उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, मटर की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, मटर के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, मटर की बुआई कब करनी चाहिए, मटर के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, मटर के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा

:- मटर की खेती रोपाई से लेकर भण्डारण तक 

मटर की खेती | Pea Farming

मटर की खेती सब्जी के रूप में की जाती है। मटर की खेती से काम समय में ज्यादा पैदावार प्राप्त किया जाता है। इस फसल को दलहन फसल कहते है। मटर में एक राइजोबियम नमक जीवाणु पाया जाता है जिससे खेत उपजाऊ बनने में सहायक होता है। इसलिए बहुत सारे किसान भाई खेत को उपजाऊ बनने के लिए भी करते है। मटर को सुखा कर इसका इस्तमाल अधिक समय तक किया जाता है। मटर का सेवन करने से हमारे शरीर को बहुत सारे पोषक तत्व पोषक तत्व प्रतिन, फ़ास्फ़ोरन, विटामिन और आयरन की प्राप्ति होती है। मटर का सेवन ज्यादातर सब्जी के रूप में किया जाता है। यह द्विबीजपत्री पौधा होता है। जिसकी लंबाई लगभग एक मीटर तक होता हैं। मटर के दाने फलियों के रूप में होता है। इसकी खेती अक्टूबर-नवंबर महीने में की जाती है। जिससे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 18-30 किवंटल तक आसानी उपजाया जाता है। जिससे किसान भाई को अच्छा मुनाफा है।

अगर आप भी मटर की खेती करने के वारे में सोच रहे है तो इस लेख से आपको खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी मिलेंगी।

:- मटर की खेती करने योग उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान 

मटर की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जाती है। लेकिन मटर के अधिक पैदावार के लिए दोमट मिट्टी बहुत अच्छा माना जाता है। इसकी खेती के लिए भूमि का P.H. मान 6 से 8 के बीच होना अच्छा माना जाता है। और मटर की खेती करने के लिए समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु को अच्छा माना जाता है। भारत में मटर की खेती रबी के मौसम में की जाती है। क्योंकि सर्दियों के समय में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है और सर्दी के मौसम में गिरने वाले पाले को आसानी से सहन कर सकते है। मटर के पौधे के लिए अधिक वर्षा और अधिक गर्मी का मौसम सही नहीं होता है। मटर को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान बहुत अच्छा होता है। लेकिन पौधे में फलियों बनने के लिए कम तापमान की आवश्यकता होती है। मटर का पौधा न्यूनतम 5 डिग्री तथा अधिकतम 25 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकता है।

:- मटर की खेती के लिए प्रमुख किस्में 

  • आर्केल
  • बोनविले
  • लिंकन
  • मालवीय मटर – 2
  • पूसा प्रभात
  • वी एल 7
  • पंजाब 89
  • पंत 157

:- आर्केल

मटर के इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 60 से 65 दिन का समय लगता है। इसके पौधे लगभग डेढ़ फ़ीट तक उगते है और इसके बीज झुर्रीदार होते है। इसके एक फली में 7 से 9 दाने होते है और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 80-90 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

:- बोनविले

मटर के इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 80 से 90 दिन का समय लगता है। जिससे निकलने वाले पौधे की लंबाई सामान्य होते है और इसके  हल्के हरे रंग के फलियों में गहरे हरे रंग के दाने होते है। इसके दाने स्वाद में मीठा होता है। इसके एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 120 से 130 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

 :- लिंकन

मटर के इस तरह के किस्मों 80 से 90 दिन के बाद उत्पाद देना शुरू कर देता है। इसके फलियाँ हरी और सिरे की ऊपरी सतह से मुड़ी हुई होती है। इसके एक फली में 7 से 8 दाने होते है। जो स्वाद में काफी मीठे होते है। इस तरह के किस्मों को पहाड़ी इलाकों में उगाया जाता है। 

:- मालवीय मटर – 2

मटर के इस तरह के किस्मों को पूर्वी मौदानी क्षेत्र में ज्यादा उगाया जाता है। इस तरह के किस्मों को तैयार होने में 120 दिन का समय लगता है। इसके प्रति हेक्टेयर के खेत से 30 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

:- पूसा प्रभात

मटर के इस तरह के किस्मों को भारत के उत्तर और पूर्वी राज्यों में  अधिक उपजाया जाता है। इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 120 का समय लगता है। जिसके प्रति हेक्टेयर के खेत से 50 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

:- वी एल 7

मटर के इस तरह के किस्में को पूरी तरह तैयार होने में 110 दिन का समय लगता है। इससे निकलने वाले फलिया हल्के हरे तथा दानो का रंग भी हल्का हरा होता है। जिसके एक हेक्टेयर के खेत से 80 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

:- पंजाब 89

मटर के इस तरह किस्मों पूरी तरह तैयार होने में 85 दिन का समय लगता है। जिससे निकलने वाले फलिया गहरे हरे रंग की होती है और इनके फलियों में 55% दाने की मात्रा पाई जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर के हिसाब के खेत से 65 क्विंटल तक उपजाया जाता है।

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:- मटर की खेती करने के लिए खेत की तैयारी और उर्वरक

मटर की खेती करने के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी होता है। इसलिए खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत को सबसे पहले गहरी जुताई करके खुला छोड़ दिया जाता है। जिससे पहले वाले फसल का अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। जब मिट्टी में ठीक तरह से धूप लग जाता है तब पहली जुताई के बाद एक हेक्टेयर के खेत के हिसाब से 12 से 15 गाड़ी गोबर की खाद को डाल कर अच्छी तरह मिला दिया जाता है। फिर खेत में पानी डाल कर छोड़ दिया जाता है और जब खेत का मिट्टी उपर से सुखा दिखाई देने लगे तब रोटावेटर लगा कर खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लिया जाता है और पाटा लगा कर खेत की समतल कर लिया जाता है। खेत में अखरी जुताई के बाद रसायनिक खाद में एक हेक्टेयर के हिसाब से दो बोरी एन.पी.के. का छिड़काव कर देना चाहिए। और बीज रोपाई के दौरान 25 KG यूरिया की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में सिंचाई के साथ डालना चाहिए। 

मटर की खेती | Pea Farming


:- बीज रोपाई का समय और तरीका

मटर की बुआई एक हेक्टेयर के खेत में 80 से 100 KG बीजो की आवश्यकता होती है| इन बीजों को लगाने से पहले बीज को राइजोबियम की उचित मात्रा में उपचारित कर लिया जाता है। इसके अलावा थीरम या कार्बेन्डाजिम से मिट्टी को उपचारित किया जाता है। 

मटर के बीज की रोपाई के लिए ड्रिल का इस्तमाल करना अच्छा होता है। क्योंकि इससे खेत में पंक्ति तैयार किया जाता है और ये पंक्ति को एक फिट की दूरी रखते हुए तैयार किया जाता है। और इन पंक्ति के बीज को 6 से 7Cm की दूरी पर लगाया जाता है।

मटर के बीज को अगेती और पछेती क़िस्मों के आधार पर अलग-अलग समय पर लगाया जाता है। अगेती किस्म के बीज की रोपाई अक्टूबर से नवंबर के महीने में करना अच्छा होता है। और पछेती किस्म के बीज की रोपाई नवंबर महीने के लास्ट तक करना अच्छा होता है। 

:- मटर के पौधे में सिंचाई 

मटर के बीजों को नम भूमि की आवश्यकता होती है। इसलिए मटर की रोपाई के तुरंत बाद ही खेत में पहली सिंचाई कर दी जाती है। जिससे बीज नम भूमि में अच्छे से अंकुरित होता है। दूसरी सिंचाई को पहली सिंचाई के 15 से 20 दिन के अंतराल में कर दिया जाता है। और बाद की सिंचाई को 20 से 25 दिन के बाद किया जाता है।

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:- मटर के फसल से खरपतवार नियंत्रण 

मटर के फसल से खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायनिक और प्राकृतिक दोनो विधि का उपयोग किया जाता है। 

रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के बाद लिन्यूरान की उचित मात्रा का छिड़काव खेत में किया जाता है।

प्राकृतिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के 20 से 30 दिन के बाद गुड़ाई  करके खरपतवार को फसल से निकाला जाता है। मटर के फसल में केबल दो से तीन गुड़ाई की आवश्यकता होती है जिससे 20 दिन के अंतराल में किया जाता है।

:- मटर के पौधे में लगने वाले प्रमुख रोग

  • रतुआ
  • तुलासिता
  • चूर्णी फफूंदी
  • फली छेदक रोग
  • चेपा

मटर के पौधे को इस तरह के रोग से बचाने के लिए समय समय पर रोगों का पहचान कर दवाई का छिड़काव किया जाता है।

:- मटर के फसल की कटाई, उपज और लाभ 

मटर के पौधे को रोपाई के बाद 130 दिन में पूरी तरह पाक कर तैयार हो जाता है। पौधे की कटाई के बाद फसल को कुछ दिन तक सुखा लिया जाता है। सुख जाने के बाद फलियों से सूखे दाने को निकाल लिया जाता है। फलियों से दाने को निकलने के लिए मशीन का भी उपयोग कर सकते है। एक हेक्टेयर के खेत से लगभग लगभग 25 क्विंटल तक उपजाया जाता है। बाजार में मटर का भाव दो से तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल होता है। जिससे किसान भाई एक वार के फसल से 70 हजार तक आसानी से कमा सकते है।

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