फूलगोभी की खेती | Cauliflower Farming | फूलगोभी की खेती से कमाई

 दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको फूल गोभी की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से फूल गोभी की उन्नत किस्मे को लगाने चाहिए, फूल गोभी की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, फूल गोभी के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, मिर्च की बुआई कब करनी चाहिए, फूल गोभी के फसल की सिंचाई कितनी करनी चाहिए, फूल गोभी के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा।

फूलगोभी की खेती | Cauliflower Farming | फूलगोभी की खेती से कमाई

फूल गोभी की खेती से सम्बंधित जानकारी

फूलगोभी की कटाई विशेष रूप से अविकसित पुष्पक्रम के रूप में की जाती है। आम तौर पर फूलगोभी का रंग सफेद होता है, लेकिन अब कई उन्नत किस्में उगाई जा रही हैं जो नारंगी और बैंगनी रंग की फूलगोभी की भी उपज करती हैं। फूलगोभी का उपयोग मुख्य रूप से भोजन के लिए सब्जी के रूप में किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग अचार, सलाद, सूप और पकोड़े बनाने में भी किया जाता है।

फूलगोभी में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन सी, के और प्रोटीन सहित कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं, जो मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। फूलगोभी खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है और यह कैंसर जैसी बीमारियों से बचाव में भी फायदेमंद माना जाता है। फूलगोभी उत्तर भारत में बड़ी मात्रा में होता है। इस लेख में आपको फूलगोभी उगाने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।

फूलगोभी की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी,जलवायु और तापमान

फूलगोभी की अच्छी फसल के लिए आपको बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है। इसके अलावा भूमि में अच्छी जल निकासी, जलभराव न होना और अच्छी जीवाश्म मिट्टी होनी चाहिए। खेती योग्य भूमि का पी.एच. मान 5.5 और 6.8 के बीच होना चाहिए। फूलगोभी के पौधों को ठंडे मौसम की जरूरत होती है। यह ठंडी और आर्द्र जलवायु में आसानी से उगता है।

इसे गर्म जलवायु में उगाने के लिए अनुपयुक्त माना जाता है क्योंकि कलियों की गुणवत्ता कम हो जाती है। फूलगोभी के फूल और पौधों को अच्छे से बढ़ने के लिए 15-18 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, लेकिन जब तापमान बढ़ता है तो फूल अच्छे से विकसित नहीं हो पाते हैं। इसका असर उपज पर भी पड़ता है।

फूल गोभी की उन्नत प्रजातियां

वर्तमान में बाजार में फूलगोभी की कई उन्नत प्रजातियां मौजूद हैं, जिन्हें रोपण की स्थिति के आधार पर अगेती, पछेती तथा मध्यम श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

फूल गोभी की अगेती प्रजाति

अगेती प्रजाति को उच्च तापमान पर विकास के लिए तैयार किया जाता है।

पूसा दीपाली 

पूसा दीपाली के पौधे रोपाई के 60 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार के पौधे में 24 से अधिक पत्तियाँ होती हैं। फूलगोभी की इस प्रजाति के फूल सफेद और ठोस होते हैं, जिनकी उपज प्रति हेक्टेयर 40 से 60 क्विंटल तक होती है।

अर्ली कुंवारी  

फूलगोभी की यह किस्म उत्तर भारत में पंजाब और हरियाणा जैसे जगहों पर उगती है। इस प्रजाति के पौधों की कटाई रोपाई के 40-50 दिन बाद शुरू हो जाती है। यह फल सफेद और अर्धवृत्ताकार होते हैं। इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 40-60 क्विंटल होती है ।

इसके अलावा अगेती प्रजाति की दो और प्रजातियां हैं जिन्हे पूसा कार्तिकी और पूसा अर्ली सिंथेटिक कहते हैं, ये अधिक उपज के लिए उगाई जाती हैं।

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फूल गोभी की पछेती प्रजाति

फूलगोभी की पछेती प्रजाति को फरवरी और मार्च जैसे सामान्य तापमान में उगाया जाता है।

स्नोबाल 16 

फूलगोभी की यह प्रजाति रोपाई के 90 दिन बाद फल देना शुरू कर देती है। इसके फल सफेद और बड़े होते हैं और पत्तियाँ सीधी खड़ी होती हैं। इस प्रजाति की उपज लगभग 220-250 क्विंटल होती है।

पूसा स्नोबॉल-1  

इस प्रजाति के पौधे रोपाई के 90 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं। इसकी कलियाँ दिखने में बड़ी और ठोस होती हैं। यह 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने वाली प्रजाति है।

पूसा स्नोबॉल के -1

फूलगोभी की यह प्रजाति रोपण के 90 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फूलों का रंग बहुत सफ़ेद और आकार बहुत बड़ा होता है। इसके फल 24-28 पत्तियों से ढके होते हैं जो हल्के हरे रंग के होते हैं। इस प्रजाति की उपज लगभग 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

फूल गोभी की मध्यम प्रजाति

फूलगोभी की यह प्रजाति ठंडी जलवायु में फसल उत्पादन के लिए जानी जाती है।

पूसा शुभ्रा

इस प्रजाति के लगाए गए पौधे लम्बे होते हैं और उनमें बड़े तने वाले फूल होते हैं। वहां दिखाई देने वाले फूल सफेद, मध्यम आकार के होते हैं और पत्तियों में नीलापन होता है। पौधों की रोपाई के 90 दिन बाद कटाई शुरू हो जाती है। इस प्रजाति  की फूलगोभी की उपज 200-250 क्विंटल होती है।

पूसा हिम ज्योति  

पूसा हिम ज्योति के पौधे रोपाई के 65 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके फल सफेद होते हैं और पत्तियों का रंग हरा-नीला होता है। यह प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक की उपज कर सकता है।

फूल गोभी के खेत की तैयारी

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फूलगोभी की पैदावार बढ़ाने के लिए पौधों की रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए और उसमें पर्याप्त मात्रा में उर्वरक डालना चाहिए। ऐसा करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी होगी, यह पुराने उत्पादों के अवशेषों को पूरी तरह से हटा देता है। इस समय के बाद खेत को खुला छोड़ दिया जाता है ताकि खेत का मिट्टी पर्याप्त रूप से सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहे। उसके बाद प्रति हेक्टेयर 20-25 पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर रोटावेटर से जुताई कर देनी चाहिए।

गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिल जाना चाहिए। उर्वरक को मिट्टी में मिलाने के बाद उसमें पानी देना चाहिए। पानी लगाने के बाद खेत को ऐसे ही छोड़ दें। इसके बाद जब ऊपर की मिट्टी सूख जाए तो दोबारा जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। फिर मचान को जमीन पर रखा जाता है और समतल किया जाता है।

खेत समतल होने के कारण आपको खेतों में पानी जमा होने की समस्या से नहीं जूझना पड़ता। अंतिम जुताई में 40 किलोग्राम पोटाश, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम नाइट्रोजन खेत में डाला जाता है और आधी नाइट्रोजन रोपण के लगभग 20 दिन बाद पानी देते समय डाला जाता है। दूसरा आधा हिस्सा फूल आने के समय डालना चाहिए।

फूल गोभी के पौधों को लगाने का सही समय और सही तरीका 

फूलगोभी के पौधों की रोपाई बीज के रूप में नहीं बल्कि पौधे के रूप में की जाती है। नर्सरी में इसके लिए पौधों को अच्छे से तैयार किया जाता है। एक हेक्टेयर खेत में अगेती प्रजाति के लिए 600 से 700 ग्राम बीज और मध्यम प्रजाति के लिए 500 ग्राम बीज की जरूरत होती है। इन बीजों को कोकोपिट ट्रे या क्यारियों में तैयार किया जाता है। इन पौधों को क्यारियों में एक महीने तक तैयार किया जाता है। आप चाहें तो किसी राज्य-पंजीकृत नर्सरी से भी पौधे खरीद सकते हैं। इससे आपका समय बचेगा और आपको जल्दी फसल मिलेगी। नर्सरी से पौधे खरीदते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पौधे बिल्कुल स्वस्थ हों। परिणामस्वरूप, विकास के दौरान उनके बीमार पड़ने का कोई जोखिम नहीं रहता है।

जून और जुलाई में फूलगोभी की अगेती प्रजाति लगाई जाती हैं, जो अच्छी पैदावार देती हैं और बाजार में अच्छी कीमत पर बिकती हैं। इसके अलावा देर से तैयार होने वाली प्रजाति को अक्टूबर में लगाया जाता है। उसी मध्यम प्रजाति के पौधों की रोपाई सितंबर में की जाती है। दोनों प्रजातियां सर्दी के मौसम में फसल की उपज करती हैं।

चूंकि फूलगोभी के पौधों की रोपाई पौधे के रूप में की जाती है। इसलिए पौधों की रोपाई से पहले खेत में क्यारियां तैयार कर ली जाती हैं। अगेती प्रजाति के आधार पर मेड़ों को 1 फुट की दूरी पर रखना चाहिए, और पछेती और मध्यम प्रजाति को लगाते समय मेड़ों को 1.5 से 2 फीट की दूरी पर रखना चाहिए। इसके बाद पौधों की रोपाई करते समय प्रत्येक पौधे के बीच लगभग 1 फीट की दूरी रखें और हमेशा शाम के समय पौधे लगाएं। इससे पौधों का अंकुरण बेहतर होता है।

फूलगोभी की खेती | Cauliflower Farming | फूलगोभी की खेती से कमाई

फूल गोभी के पौधों की सिंचाई

फूलगोभी के पौधों को अच्छी तरह से विकसित होने के लिए नमी की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें अधिक बार पानी देने की जरूरत होती है। ऐसा करने के लिए पौधे को खेत में रोपने के तुरंत बाद पहला पानी देना चाहिए। गर्मियों में इसे सप्ताह में दो दिन पानी देने की जरूरत होती है, जबकि बरसात के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पानी देना चाहिए।

फूल गोभी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण

फूलगोभी के पौधों को मजबूत खरपतवार नियंत्रण की जरूरत होती है। क्योंकि खरपतवारों की उपस्थिति से पौधों में रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों को सही मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं और उनका विकास भी रुक जाता है। फूलगोभी की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई एक प्राकृतिक विधि है। हालाँकि, पौधों को ज़्यादा गहराई तक ढीला नहीं करना चाहिए, अन्यथा पौधों के खराब होने का खतरा रहता है।

पौधों की पहली निराई-गुड़ाई रोपाई के लगभग 20-25 दिन बाद करें। प्रथम खरपतवार नियंत्रण के 15 दिन बाद दूसरा खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए, इस समय पौधों की जड़ों को मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए। भविष्य में जब तक पौधे पूर्ण रूप से विकसित न हो जाएं तब तक खेत में खरपतवार दिखाई दें तो निराई-गुड़ाई कर दें।

फूल गोभी में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

झुलसा रोग  

इस प्रकार का रोग गर्मियों में पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है। यह रोग पत्तियों को जलाकर खराब कर देता है। अत: रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की सही मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

पौध गलन रोग 

इस प्रकार का रोग नर्सरी में पौधे तैयार करते समय होता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे का तना ज़मीन की सतह से कला लगने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधा कुछ ही समय में सड़ कर खराब हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए बीज को बोने से पहले सही मात्रा में थीरम, बाविसिटन या कैप्टन से उपचारित करके खेत में लगाना चाहिए।

ब्लैक राट रोग 

ब्लैक राट रोग की बीमारी को काला सड़न रोग भी कहा जाता है। इस रोग से ग्रसित होने पर पौधे की पत्तियों पर V आकार के पीले धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियाँ सड़ कर पूरी तरह खराब हो जाती हैं। सही मात्रा में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करके पौधों को इस रोग से बचाया जा सकता है।

इसके अलावा फूलगोभी के पौधों में कई प्रकार के रोग लगते हैं, जैसे:- मृदु रोमिल फफूंद, पत्ती धब्बा रोग, सुंडी रोग, भूरी गलन, फूलों पर चमकीला कीट रोग आदि। जो पौधों या फसलों की पत्तियों पर हमला करके उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।

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फूल गोभी के फूलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ

प्रजाति के आधार पर फूलगोभी लगभग 60-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फलों को तब तोड़ना चाहिए जब फल सख्त और आकर्षक हों। फूलगोभी की पैदावार लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसका बाज़ारी मूल्य 10-15 रुपये प्रति किलो है। इस आधार पर किसान भाई एक हेक्टेयर फूलगोभी की फसल से लगभग 150,000 से 200,000 तक की आय आसानी से अर्जित कर सकते हैं।


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