कुंदरू की खेती | Ivy Gourd Farming | कुंदरू की खेती से लाभ

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको कुंदरू की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से कुंदरू की उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, कुंदरू की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, कुंदरू के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, कुंदरू की बुआई कब करनी चाहिए, कुंदरू के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, कुंदरू के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा।

कुंदरू की खेती | Ivy Gourd Farming | कुंदरू की खेती से लाभ

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कुंदरू की खेती से सम्बंधित जानकारी

कुंदरू को लता वाले बारहमासी पौधे के रूप में उगाया जाता है। इसकी बेल 3 से 5 मीटर लंबी होती है और इसे फैलने के लिए सहारे की आवश्यकता होती है। पौधा 4 से 5 वर्षों तक फसल पैदा करता है। लेकिन जिन जगहों पर बहुत ठंड होती है, वहां कुंद्रा की फसल केवल 7 से 8 महीने तक ही की जा सकती है। इसमें पर्याप्त मात्रा में फ्लेवोनोइड्स, रोगाणुरोधी और जीवाणुरोधी पदार्थ, कैल्शियम, आयरन, फाइबर, विटामिन ए और सी मौजूद होते हैं। इस कारण से कुंदरू का सेवन फायदेमंद होता है।

भारत में कुंदरु पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में उगाया जाता है। देश के कुछ हिस्सों में किसान वैज्ञानिक तरीकों से कुंदरु की खेती कर रहे हैं, व्यावसायिक उत्पादन बढ़ा रहे हैं और अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। यदि आप भी कुंदरु उगाने की योजना बना रहे हैं, तो यह लेख आपको कुंद्रा उगाने के तरीके के बारे में जानकारी प्रदान करेगा।

कुंदरू की खेती कैसे करें

कुंदरु उगाने के लिए किसी विशेष प्रकार की मिट्टी की जरूरत नहीं होती है। हालाँकि कार्बनिक पदार्थ से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी में अच्छा उत्पादन पाया जाता है। कुंदरु को भारी मिट्टी या गीले इलाके में न लगाएं। ऐसा इसलिए है क्योंकि पौधे की लताएं पानी के प्रवेश को सहन नहीं कर पाती हैं। खेती के लिए मिट्टी लगभग 7 P.H. का होना चाहिए।

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कुंदरू की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु व तापमान

इसके पौधों को गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में जहाँ अधिक ठंड पड़ती है, पैदावार कम होती है। वर्षा ऋतु के दौरान इन्हें केवल 100 से 150 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। हालाँकि आधुनिक तकनीकों की वजह से सिंचित क्षेत्रों में इसे उगाना आसान है। 30-35 डिग्री तापमान पर कुंदरू की अच्छी फसल प्राप्त होती है।

कुंदरू खाने के लाभ

कुंदरु में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। अन्य सब्जियों की तुलना में कुंदरु विटामिन और खनिजों का बहुत अच्छा स्रोत है। 100 ग्राम कुंदरु में 0.08 मिलीग्राम विटामिन बी-2 (राइबोफ्लेविन), 1.6 ग्राम फाइबर, 1.4 मिलीग्राम आयरन, 40 मिलीग्राम कैल्शियम और 0.07 मिलीग्राम विटामिन बी1 (थियामिन) होता है। यदि आप मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्त शर्करा या पेट की समस्याओं से पीड़ित हैं, तो आपको कुंदरू लेना चाहिए। इसके अलावा यह कैंसर, किडनी स्टोन, तंत्रिका तंत्र, अवसाद, थकान, मधुमेह, पाचन और वजन घटाने जैसी समस्याओं को दूर करने में सहायक माना जाता है। कुंदरु के हमारे शरीर के लिए कई फायदे हैं।

कुंदरू खाने के नुकसान

अगर किसी की सर्जरी हो रही है तो उन्हें दो हफ्ते पहले से ही कुंदरू का सेवन बंद कर देना चाहिए क्योंकि कुंदरू रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है। जो महिलाएं गर्भवती हैं या स्तनपान करा रही हैं उन्हें कुंदरू का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके लगातार सेवन से रक्त शर्करा का स्तर काफी कम हो जाता है। इसके अलावा कुछ लोगों को उल्टी और मतली जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

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कुंदरू का बीज

इंदिरा कुंदरू 5  

इस कुंदरु की प्रजाति में फल का आकार अंडाकार और हल्का हरा होता है। यह एक उच्च उपज देने वाली प्रजाति है जो प्रति पौधा 20 किलोग्राम से अधिक और प्रति हेक्टेयर खेत में 400 से 425 क्विंटल तक उत्पादन कर सकता है।

इंदिरा कुंदरू 35 

कुंदरू की इस प्रजाति के फल 6 सेमी लंबे और 2.45 सेमी व्यास के होते हैं। इस प्रजाति का एक पौधा 22 किलोग्राम तक उपज देता है। यह प्रजाति प्रति हेक्टेयर 410 से 450 क्विंटल तक उपज देती है।

सुलभा (सी जी- 23)  

यह प्रजाति 45-50 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसमें मौजूद कुंदरु 9 सेमी लंबा और गहरे हरे रंग का होता है। एक पौधे से 20-22 किलो कुंदरु पैदा होती हैं। प्रति हेक्टेयर उत्पादन मात्रा 400 से 425 क्विंटल के बीच होता है।

काशी भरपूर (VRSIG – 9)  

इस प्रजाति के पौधों को परिपक्वता तक पहुंचने में 45 से 50 दिन का समय लगता है। इस पर लगने वाले फल हल्के हरे, अंडाकार और सफेद धारियों वाले होते हैं। एक पौधे से 20-25 किलोग्राम कुंदरु प्राप्त होता है और प्रति हेक्टेयर खेत से 350-400 क्विंटल की उपज प्राप्त होती है।

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कुंदरू के खेत की तैयारी व उवर्रक

कुंदरु के पौधे एक बार लगाने के बाद 4 से 5 साल तक फसल देते हैं। इसलिए इस फसल को लगाने से पहले खेत को पूरी तरह तैयार कर लें। ऐसा करने के लिए सबसे पहले खेत की साफ-सफाई और गहरी जुताई करके खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को हटा दें। फिर खेत को कुछ दिनों के लिए सूर्य के प्रकाश में छोड़ दें। फिर खेत की सिंचाई करें और उसे ऐसे ही छोड़ दें। जब खेत का पानी सूख जाए तो खेत की दो या तीन बार तिरछी जुताई करें।

इससे कृषि भूमि भुरभुरी हो जाती है। खेत को समतल करने और रोपाई के लिए रोपण गड्ढा तैयार करने के लिए ढीली मिट्टी को समतल करें। ये गड्ढों को एक के पीछे एक 1.5 मीटर की दूरी पर तैयार करें। ये सभी गड्ढे 30 सेमी लंबे, गहरे और चौड़े होने चाहिए। इन गड्ढों को 4-5 किलो गोबर की खाद से भर दें। कुंदरु के अच्छे उपज के लिए प्रत्येक हेक्टेयर खेत में 40-60 किलोग्राम फास्फोरस, 60-80 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम पोटाश का उपयुक्त मिश्रण तैयार करके उन्हे खेतों में देना चाहिए।

कुंदरू के बीज की तैयारी

कुंदरू के बीजों की रोपाई बीजों को कलम की तरह काटकर की जाती है। ऐसा करने के लिए 4-12 महीने पुरानी लताओं से 15-20 सेमी लंबी और 5-7 गांठों वाली 1.5 सेमी मोटे कलमों को काटा जाता है। इन कलमों को गोबर के खाद और मिट्टी के मिश्रण से भरी प्लास्टिक की थैलियों में लगाया जाता है और फिर पानी दिया जाता है और उनकी देखभाल की जाती है। 50-60 दिनों के बाद कलमों में जड़ें बनना शुरू हो जाएंगी। इन जड़ों को निकालकर खेत में तैयार गड्ढों में रोप दिया जाता है। इस समय प्रत्येक 10 मादा पौधों के बीच एक नर पौधा लगाना सही माना जाता है। पौध रोपण के लिए सितंबर-अक्टूबर सबसे अच्छा महीना माना जाता है।

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कुंदरू फसल सिंचाई प्रबंधन

कुंदरु फसलों के लिए पौधों को गर्मियों में हर 4 से 5 दिनों में पानी देना चाहिए। इसके अलावा फल लगने के मौसम के दौरान खेत की नमी बनाए रखने और बरसात के मौसम में उचित जल निकासी सुनिश्चित करने का भी ध्यान रखना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि जल भराव के दौरान पौधे पीले पड़ जाते हैं और खराब हो जाते हैं।

कुंदरू की फसल में रोग एवं रोकथाम

फल मक्खी रोग  

इनमें फल मक्खी रोग शामिल है, जिसमें रोग का कारण बनने वाला कीट फल पर अंडे देता है, जिससे वह सड़ जाता है और खराब हो जाता है। इसके अलावा धूसर रंग का गुबरैला और फल छेदक कीट पौधों की पत्तियों को छेदकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।

चूर्ण फफूंदी रोग 

इसमें चूर्ण फफूंदी भी होती है जो फफूंद के रूप में तनों और पत्तियों पर हमला करती है, जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और खराब हो जाती हैं। ऐसे रोगों की रोकथाम के लिए पौधों पर गोमूत्र या नीम के काढ़े में माइक्रोजाइम घोल मिलाकर छिड़काव करें।

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मृदु चूर्णिल आसिता रोग  

कुंदरू के पौधों में इस प्रकार का रोग मौसम परिवर्तन के कारण लगता है। इस रोग से प्रभावित पुरानी पत्तियों की निचली सतह पर सफेद गोल धब्बे बनने लगते हैं, जिनका आकार और संख्या भी समय के साथ बढ़ती जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए 0.1 प्रतिशत बाविस्टिन का मिश्रण तैयार करके अपने पौधों पर छिड़काव करें।

कुंदरू के फलों की तुड़ाई, पैदावार और लाभ

कुंदरु का उत्पाद 45-50 दिनों के बाद पहली फसल के लिए तैयार हो जाता है। फलों को 4-5 दिन के अंतराल पर कई बार तोड़ा जा सकता है। कुंदरु की उपज प्रजाति, खाद, उर्वरकों और पौधों की देखभाल के माध्यम से प्राप्त की जाती है। किसान भाईयों को अपने खेतों से प्रति हेक्टेयर लगभग 300 से 450 क्विंटल उपज प्राप्त होती है। बाजार में कुंदरु की कीमतें भी बहुत अच्छी हैं और किसान कुंदरू उगाने से अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।

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