परवल की खेती | Parwal cultivation । Parwal ki kheti kayse kren

परवल की खेती | Parwal cultivation । Parwal ki kheti kayse kren

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको परवलकी खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से परवलके उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, परवलकी बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, परवल के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिएपरवल की बुआई कब करनी चाहिए, परवल के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिएपरवल के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा |

परवल की खेती | Parwal cultivation

परवल की खेती से सम्बंधित जानकारी

परवल की कटाई सब्जी के रूप में की जाती है, परवल सर्वप्रथम भारत में ही उगाई गई थी।इसे अक्सर नगद फसल के रूप में उगाया जाता है। परवल एक पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक सब्जी है। जिसमें कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और प्रोटीन जैसे कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं। परवल की सब्जी खाना इंसान के सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके फलों से सब्जियों के अलावा आचार और लड्डू भी बनाये जाते हैं।

परवल की खेती आमतौर पर भारत में ओडिशा, बिहार, असम और बंगाल जैसे राज्यों में की जाती है। परवल में विटामिन प्रचुर मात्रा में होता है, इसलिए बाजारों में इस सब्जी की काफी मांग रहती है, जिससे किसान परवल उगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। परवल की खेती के बारे में आपको महत्वपूर्ण जानकारी देंगे।

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परवल की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान

उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी तीव्र वृद्धि के लिए उपयुक्त मानी जाती है। पी.एच. मान भी सामान्य होना चाहिए। पलवल की खेती के लिए बरसात, गर्म और आर्द्र जलवायु अनुकूल मानी जाती है, हालांकि अत्यधिक वर्षा इसकी खेती के लिए हानिकारक है। इसके अलावा सर्दियों में खेती संभव नहीं है, क्योंकि सर्दियों में पाला पौधों को हानि पहुंचाता है।

बीज के अंकुरण के लिए सामन्य तापमान की जरूरत होती है। परवल के फलों के बीज, शल्क और जड़ों के उचित अंकुरण के लिए 20-25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। अधिकतम और न्यूनतम तापमान प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं।

परवल की प्रमुख प्रजातियां

परवल की खेती | Parwal cultivation

परवल की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए समय और स्थान के आधार पर प्रमुख प्रजातियों को तैयार किया गया है।

काशी अलंकार प्रजाति के पौधे 

इस प्रजाति के पौधों की पैदावार अधिक होती है। यह आमतौर पर भारत के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में उगाया जाता है। इस प्रजाति के फल हल्के हरे रंग के होते हैं और फल के अंदर के बीज मुलायम होते हैं। परवल की इस प्रजाति की उपज लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है।

स्वर्ण अलौकिक प्रजाति के पौधे

परवल की इस प्रजाति के फल में बीज कम मात्रा में होते हैं, फल का आकार अंडाकार, रंग हल्का हरा होता है। इस प्रकार के फल से मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। इस प्रजाति की उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है।

इसके अलावा परवाला की कई प्रजातियां हैं, जो अधिक पैदावार के लिए अलग-अलग जगहों पर उगाई जाती हैं। इसमें स्वर्ण रेखा, डी.वी.आर.पी.जी 1, काशी सुफल, सी.एच.ई.एस. संकर 1, फैजाबाद परवल 1, राजेन्द्र परवल 1 जैसी प्रमुख प्रजातियां हैं।

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परवल के खेत की तैयारी

परवल की सही पैदावार के लिए बुआई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत को रोटावेटर की मदद से गहरी जुताई करनी चाहिए। यह पुराने उत्पादों के अवशेषों को पूरी तरह से हटा देता है। जुताई के बाद खेत कई दिनों तक खुला रहना चाहिए। सुनिश्चित करें कि खेत की मिट्टी में सूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्रा में रहे।

फिर मिट्टी को ढीला करने के लिए कल्टीवेटर से दो से तीन बार गहरी जुताई करें। फिर खेत में पानी डालें और उसे अच्छी तरह पलेव दें। पलेव के बाद मिट्टी सूखने पर दोबारा जुताई करें। यदि मिट्टी भुरभुरी हो जाए, तो उसके बाद उसमें पाटा लगवाकर चलवा दें जिससे खेत समतल भी हो जाएगा और पानी भी जमा नहीं होगा।

परवल के पौधों के रोपाई का सही समय और तरीका

परवल के बीजों को पौधे के रूप में लगाया जाता है। इसके कारण, पौधों का प्रत्यारोपण समतल और मेड़ दोनों स्थानों पर किया जा सकता है। समतल भूभाग पर धोरेनुमा तैयार की गई क्यारियों पर पौधे लगाए जाते हैं। इन क्यारियों के बीच 4 से 5 मीटर की दूरी रखनी जरूरी है। इसके अलावा मेड़ पर रोपाई के लिए पौधों को एक मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए और प्रत्येक मेड़ के बीच डेढ़ से दो मीटर की दूरी रखनी चाहिए। मेड़ पर लगाये गये पौधों को सहारा देने के लिए बीम की सहायता से ढाँचा तैयार कर लेना चाहिए। ताकि पौधा अच्छे से विकसित हो सके और अधिक पैदावार दे सके।

परवल के पौधों से अच्छी फसल लेने के लिए समय पर पौधों की रोपाई करना बहुत जरूरी है। जून और अगस्त का महीना रोपण के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके अलावा पौधे को अक्टूबर और नवंबर में भी उगाया जा सकता है।

परवल के पौधों की सिंचाई

परवल के पौधों को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। इसके बाद इसे हर 12 से 15 दिन में पानी देना चाहिए। मेड़ पर लगे पौधों की सिंचाई ड्रिप सिंचाई विधि से करनी चाहिए। बरसात के मौसम में पौधों को जरूरत के समय ही पानी देना चाहिए।

परवल के खेत में उवर्रक की मात्रा

सभी पौधों की तरह परवल के पौधों को भी अच्छी उपज देने के लिए सही उर्वरकों की जरूरत होती है। ऐसा करने के लिए खेत की तैयारी के समय 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद खेत में डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। वही रासायनिक उर्वरक में एन.पी.के. के दो या तीन बोरी मात्रा खेत की आखिरी जुताई के समय छिड़क देना चाहिए तथा 20 किलोग्राम यूरिया उर्वरक पौधों के विकास के समय डालना चाहिए।

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परवल के खेत में खरपतवार नियंत्रण

परवल की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है। ऐसा करने के लिए रोपण के लगभग 25-30 दिन बाद खेत से निराई-गुड़ाई विधि द्वारा खरपतवार हटा देना चाहिए। इस पौधे को केवल 3-4 बार निराई-गुड़ाई की जरूरत होती है। पहली निराई-गुड़ाई के बाद शेष निराई-गुड़ाई 20-25 दिन में कर देनी चाहिए।

परवल के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

परवल की खेती | Parwal cultivation

लाल भृंग कीट रोग

यह कीड़ों से फैलने वाली बीमारी है। लाल भृंग रोग पौधों के अंकुरित होने के बाद होता है। इस प्रकार का कीट रोग पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें खराब कर देता है। यह कीट रोग पौधे को पूरी तरह से खराब करके पैदावार पर अधिक प्रभाव डालता है। इस प्रकार के कीट रोग से बचाव के लिए पौधों पर सुबह के समय राख छिड़कें।

फल मक्खी रोग  

इस प्रकार का रोग पौधे के फलों में होता है। फल मक्खी रोग फल में अंडे देती है और लार्वा फल में प्रवेश कर उसे पूरी तरह से खराब कर देता है। इंडोसल्फान या मेलाथियान के मध्यम मात्रा के छिड़काव से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

चूर्णिल आसिता रोग  

इस प्रकार की बीमारी को चूर्णी फफूंद, भभूतिया और छाछीया के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग लगभग सभी प्रकार के परवल वर्गीय फलों में होता है। इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियाँ सफेद होने लगती हैं। इस रोग से संक्रमित होने पर पूरा पौधा सफेद पाउडर से ढक जाता है। इसके फलस्वरूप पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रुक जाती है और पौधा पूरी तरह खराब हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए आपको पौधों पर उचित मात्रा में कैराथेन,सल्फेक्स या टोपाज का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

इसके अलावा परवाला के पौधों में कई प्रकार के रोग पाए जाते हैं, जैसे: फल सड़न, डाउनी मिल्डयू, मोजैक आदि।

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परवल के फलो की तुड़ाई, उपज और लाभ

परवल की खेती | Parwal cultivation

परवल के पौधे की 3-4 महीने में पैदावार देना शुरू हो जाएगी। परवल की कटाई सप्ताह में एक बार करनी चाहिए क्योंकि परवल के पौधों के फल देर से पकते हैं। यदि परवल पहले पकने शुरू कर देते हैं, तो उन्हें सप्ताह में दो बार काटा जाना चाहिए। एक बार परवल पूरी तरह से विकसित हो जाने पर तीन साल तक उत्पादन देगा। परवल की प्रजातियां जिनकी उपज लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। बाजार में प्रति किलोग्राम की कीमत करीब 50 रुपये है। इस आधार पर प्रत्येक किसान भाई लगभग दस लाख रुपये की अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।


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