भिंडी एक ऐसी सब्जी है जो सब्जियों में अपना एक अलग ही स्थान रखती है। यह एक ऐसी सब्जी है जिसे विभिन्न प्रकार की सब्जियों के साथ तैयार किया जा सकता है। भिंडी में कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए, बी और सी जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होते हैं।
भिंडी के सेवन से पेट की हल्की-फुल्की बीमारियों से राहत मिलती है। भिंडी की खेती कहीं भी की जा सकती है। इस पोस्ट में आपको भिंडी की खेती कैसे करें और भिंडी की खेती से संबंधित पूरी जानकारी दी गई है।
भिंडी की खेती खरीफ और बरसात दोनों मौसम में की जा सकती है। भिंडी के पौधे 1 से 1.5 मीटर ऊंचाई तक बढ़ते हैं और इन्हें बढ़ने के लिए रेतीली और दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। खेती योग्य भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए।
भिंडी की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
भिंडी की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, इसके लिए भूमि में अच्छी जल निकासी और अच्छी मिट्टी का पीएच मान 7 और 8 के बीच होना चाहिए।
भिंडी की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। भारत में भिंडी की खेती खरीफ और बरसात दोनों मौसम में की जा सकती है। बहुत अधिक गर्मी और बहुत अधिक ठंड दोनों ही भिंडी की फसल के लिए हानिकारक हैं। लेकिन सर्दियों में पाला फसल को और भी अधिक नुकसान पहुंचाती हैं।
भिंडी उगाते समय बीजों को अंकुरण के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। लगभग 15 डिग्री के तापमान पर बीज कठिनाई से अंकुरित होते हैं। इसके बाद जब पौधे अंकुरित होंगे तो इन पौधों को बढ़ने के लिए 27 से 30 डिग्री तापमान की जरूरत होगी।
भिंडी की उन्नत किस्मे
भिंडी कई प्रकार की होती है और इनकी कटाई फसल की मात्रा और उत्पाद के आधार पर की जाती है।
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पूसा ए – 4
यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा विकसित भिंडी की एक उन्नत किस्म है। बीज के अंकुरण के 15 से 20 दिन बाद पौधों पर फूल आना शुरू हो जाते हैं। खेती की इस विधि से बीज बोने के 45 दिन बाद ही पहली फसल के लिए तैयार हो जाते हैं। भिंडी की यह किस्म प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन तक उपज देती है।
भिंडी की पंजाब-7
भिंडी की यह किस्म रोग प्रतिरोधी है और इस किस्म के पौधों को 50-55 दिनों में तोड़ा जा सकता है। ये दिखने में हरे और सामान्य आकार के होते हैं। इस किस्म की उपज 8 से 20 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
वी. आर. ओ. – 6
इस पौधे को काशी प्रगति के नाम से जाना जाता है और इसे वाराणसी में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया था। बीज रोपाई के 45-50 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं और यह किस्म पीलीशिरा मोजेक (येलो वेन मोज़ेक) नामक बीमारी से मुक्त होती है। इस पौधे की प्रजाति बरसात के मौसम में बहुतायत से उगती है।
हिसार उन्नत
इस प्रकार का पौधा मुख्यतः हरियाणा और पंजाब में उगाया जाता है। यह किस्म हरियाणा के चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा तैयार की गया है। इसकी उपज 15 टन प्रति हेक्टेयर होती है और बुआई के 45 दिन बाद पौधे पहली फसल के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के पौधे दोनों मौसमों में भी उगाये जा सकते हैं।
अर्का अनामिका
इस किस्म के भिंडी के पौधों में पीलीशिरा मोजेक (येलो वेन मोज़ेक) रोग नहीं होता है तथा इस किस्म के पौधे गहरे हरे रंग के तथा लम्बे होते हैं। इसकी पंखुड़ियाँ जमुनी रंग की होती हैं। इस से प्रति हेक्टेयर 20 टन फसल का उत्पादन होता है, जिसे वर्ष के दोनों मौसम में उगाया जा सकता है।
परभनी क्रांति
इस किस्म के पौधे रोगग्रस्त नहीं होते हैं, इसके पौधे बीज बोने के लगभग 50 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के उगाए गए पौधे गहरे हरे रंग के होते हैं, जिनकी लंबाई 15 से 20 से.मी. होती है। अगर उत्पादकता की बात करें तो उपज 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
वर्षा उपहार किस्म के पौधें
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा उत्पादित भिंडी की यह किस्म भी दोनों मौसमों में उपज वाली किस्म है। इस किस्म की उपज लगभग 10 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
साक्षी एफ 1
यह एक भिंडी को बढ़ाने और पैदावार बढ़ाने के लिए बनाई गई एक प्रजाति है। ये पौधे रोपण के 40-50 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी उपज लगभग 20 टन प्रति हेक्टेयर होती है और फल का रंग गहरा हरा होता है।
आजाद 3
भिंडी की इस किस्म को आज़ाद कृष्णा के नाम से जाना जाता है और यह सबसे विभिन्न लाल फल की उपज करती है। यह 15 सेमी लंबे फल, प्रति हेक्टेयर 10-15 टन के हिसाब से उपज देते हैं।
भिंडी के खेतों को कैसे तैयार करें
सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें और प्रति हेक्टेयर 15 गाड़ी गोबर की खाद डालकर मिट्टी में अच्छी जुताई करके मिला दें। गोबर की खाद अच्छे से मिलाकर उस खेत में पानी भरकर पलेव दें। पलेव देने के 2 से 3 दिन बाद जब खेत की मिट्टी थोड़ी सूखी हो जाए तो उसमें एक पाटा लगा दें और जब तक खेत समतल न हो जाए तब तक जुताई करें।
भिन्डी के पौधों का रोपाई का सही समय और तरीका
भिंडी के बीज की बुआई सीधे खेतों में होती है। मौसम और फसल के आधार पर बुआई होती है। ग्रीष्मकालीन फसल के लिए बुआई फरवरी से मार्च तक और बरसात के मौसम में जुलाई में की जाती है।
भिंडी के बीज को खेत में बोने से पहले उन्हें गोमूत्र या कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए। एक हेक्टेयर में बुआई के लिए 5 किलोग्राम बीज उपयुक्त होते हैं, बुआई मेड़ों पर यंत्रवत् तथा हाथ से दोनों प्रकार से की जा सकती है।
पौधारोपण के समय बनाई गई प्रत्येक कतार के बीच 1 फीट(30 से.मी.) तथा प्रत्येक पौधे के बीच 15 से.मी. की दूरी होनी चाहिए। यदि बरसात के मौसम में फसल की गई है, तो कतारों के बीच की दूरी डेढ़ से दो फीट और अलग-अलग पौधों के बीच 25 से 30 से.मी. तक होनी चाहिए।
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भिंडी के पौधों की सिंचाई
इसके बीज नम मिट्टी में लगाए जाते हैं और उन्हें तुरंत पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है। सबसे पहले पौधे को 10 से 15 दिन के अंतराल पर पानी दिया जाता है, यदि गर्मी अधिक है तो सप्ताह में दो बार पानी देना चाहिए। बरसात के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पानी देना चाहिए।
भिंडी के पौधों में उर्वरक की मात्रा
भिंडी की अच्छी फसल के लिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में उर्वरक का होना जरूरी है। खेत की जुताई करते समय, खेत में प्रति हेक्टेयर 15 ट्रक पुरानी गोबर की खाद या एक टन वर्मिंग कम्पोस्ट को अच्छी तरह से डालकर मिला दें।
साथ ही यदि किसान रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहते हैं तो दो बोरी एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए। जब पौधे 50-90 दिन के हो जाएं तो पानी के साथ 20 किलोग्राम यूरिया खाद डालें।
भिंडी की खेती में खरपतवार पर नियंत्रण
भिंडी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के दो तरीके हैं। सबसे पहले, बुआई से पहले फ्लूक्लोरेलिन के मध्यम प्रयोग से या निराई गुड़ाई द्वारा खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए बीज बोने के 20 दिन बाद और फिर 15-20 दिनों के अंतराल पर गुड़ाई कर दें। अगर पौधा भारी है तो उसकी जड़ों पर मिट्टी चढ़ा दें इसे पौधा गिरेगा नहीं।
भिंडी के पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग तथा उसके रोकथाम
भिंडी के फसल में कई तरह के रोग लगते हैं इसलिए समय-समय पर इसकी देखभाल करनी चाहिए। इसलिए इसकी उत्पादकता प्रभावित नहीं होगी। इससे होने वाली बीमारियों के बारे में कुछ जानकारी इस प्रकार है:-
फल छेदक रोग
इस प्रकार की बीमारी बरसात के मौसम में अधिक होती है। इस रोग के प्रकोप से फसलों को अधिक नुकसान होता है। यह रोग भिंडी के फल को अंदर से खाकर नष्ट कर देता है। इसके अलावा यह रोग पौधों के तनों पर भी दिखाई देता है, जिसके परिणामस्वरूप फलों की स्थिति बदल जाती है और ख़राब हो जाती है। प्रोफेनोफॉस या क्विनॉलफॉस की आवश्यक मात्रा का छिड़काव करके इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
चूर्णिल आसिता कीट रोग
भिंडी के पौधों पर यह रोग किसी भी रूप में लग सकता है। रोग के प्रकोप से पौधे की पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बे बन जाते हैं, जो धीरे-धीरे बड़े क्षेत्र में फैल जाते हैं। जिससे पौधों का प्रकाश संश्लेषण बाधित हो जाता है। इसलिए रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मध्यम मात्रा में गंधक का छिड़काव करना चाहिए।
पीत शिरा कीट रोग
यह एक विषाणुजनित रोग है जिसके कारण भिंडी के पौधों की पत्तियों के सिरे पीले पड़ जाते हैं। परिणामस्वरूप, नई उभरने वाली शाखाएँ पीली हो जाती हैं और फल धीरे-धीरे पीले होने लगते हैं। यदि समय पर उपचार नहीं किया गया तो पौधा बढ़ना बंद कर देगा। पौधों पर उचित मात्रा में इमिडाक्लोप्रिड या डाइमिथोएट का छिड़काव करके इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
लाल मकड़ी रोग
पौधे के बढ़ने के साथ ही पौधे पर लाल मकड़ी का रोग देखने को मिलता है, ये कीट सफेद मक्खियों की तरह पत्तियों की निचली सतह पर समूह बना कर रहते हैं। वे पत्तियों से धीरे-धीरे रस चूसते हैं, जिससे पौधे को बढ़ना रुक जाता है। पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, पूरा पौधा पीला होकर मर जाता है। डाइकोफॉल या गंधक के उचित छिड़काव से इस बीमारी को रोका जा सकता है।
भिंडी के फलो की कटाई, उपज और लाभ
भिंडी के पौधा रोपण के लगभग 40-50 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। फलों की तुड़ाई कई चरणों में करनी चाहिए, पहली तुड़ाई के चार से पांच दिन के बाद दूसरी तुड़ाई करनी चाहिए। इसके फलों की तुड़ाई पकने से पहले कर लेनी चाहिए। अन्यथा पकने के बाद फल कड़वा हो जाएगा और उसकी उपज कम हो जाएगी। फल को अगले दिन तक ताज़ा रखने के लिए इसे शाम के समय तोड़ना बेहतर होता है।
किसान भाई कम पैसे खर्च करके भिंडी की खेती से अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। विभिन्न आंकड़ों के अनुसार औसत उपज 10-15 टन प्रति हेक्टेयर पाई जाती है। बाजार में भिंडी की कीमत 10-30 रुपये प्रति किलोग्राम है, इसलिए एक बार भिंडी लगाने से प्रति हेक्टेयर 1.5-200,000 रुपये तक की आय कर सकते हैं।
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