मसूर की खेती | Lentil cultivation | मसूर की खेती से लाभ

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको मसूर की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से मसूर की उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, मसूर की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, मसूर के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, मसूर की बुआई कब करनी चाहिए, मसूर के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, मसूर के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा
मसूर की खेती | Lentil cultivation | मसूर की खेती से लाभ

मसूर की खेती बुआई से लेकर भण्डारण तक

मसूर की खेती दलहन फसल के लिए किया जाता है। दाल में मसूर का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसे मौसरी के नाम से भी जाना जाता है। भारत देश में मसूर की खेती रबी फसल के साथ किया जाता है। इस फसल की खेती असिंचित जगह पर भी आसानी से की जाती है। क्योंकि इसके पौधे काम तापमान, सुखा और नामी वाले जगह के प्रति सहनशील होते है। और मसूर के दाने में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाया जाता है। 100mg मसूर के दाने में 0.51 मिली ग्राम थाइमिन, 6.5 मिली ग्राम आयरन, 25 GM प्रोटीन, 68 MG कैल्शियम, 4.8 मिलीग्राम नियासिन, 0.21 मिलीग्राम राइबोफ्लोविन, 1.5 GM वसा, 3.2 GM रेशा और 61.8 GM कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पाई जाती है, को हमारे शरीर के लिए बहुत ज्यादा लाभदायक होता है। 

मसूर का इस्तेमाल केवल दल के रूप में नहीं बल्कि नमकिन और मिठाई बनाने के लिए भी किया जाता है। मसूर के पौधे का जड़ गांठेदार होता है। जिसके गांठ में सूक्ष्म जीवाणु उपस्थित रहता है। जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ा देता है। पूरे विश्व में मसूर की खेती के मामले में भारत दूसरा स्थान पर आता है।  मसूर की खेती किसान भाई व्यापारिक तौर पर करते है जिससे ज्यादा मुनाफा कमा लेते है। इसलिए अगर आप भी मसूर की खेती करना चाहते है तो इस लेख से आपको खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी मिलेंगी।

मसूर की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान

मसूर की खेती नम संरक्षण वाली भरी दोमट मिट्टी में की जाती है। और मिट्टी का P.H. मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए। मसूर की खेती ठंडी के मौसम में की जाती है जिससे पौधे का विकास अच्छे से होता है। 

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मसूर की खेती के लिए उन्नत किस्में

  • नरेन्द्र मसूर - 1 (एनएफएल-92)
  • पूसा - 1
  • पन्त एल - 406
  • टाइप - 36
  • aft. 77
  • एल. 9-12
  • जे. एल. एस. -1
  • जे. एल. एस.-2
  • नूरी ( आईपीएल-81)
  • मलिका (के -75)
  • सीहोर 74-3
  • एल. 9-12
  • जे. एल. एस. - 1
  • जे. एल. एस. - 2
  • नूरी ( आईपीएल-81)
  • मलिका (के-75)
  • सीहोर 74-3
  • सपना
  • पन्त एल - 234

नरेन्द्र मसूर-1 (एनएफएल-92)- इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 125 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 22क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

पूसा – 1 - इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में  100 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 18 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है। 

पन्त एल – 406- इस तरह के किस्में को पूरी तरह तैयार होने में 150 दिन का समय लगता है और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 32 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

टाइप – 36 – इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 140 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 22 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

बी. 77 – इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 120 दिन का समय लगता है।और इसके एक  हेक्टेयर के खेत से 18 – 20 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

एल. 9-12 – इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 140 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 18 – 20 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

जे. एल. एस. – 1- इस तरह के किस्मों को पुरी तरह तैयार होने में 120 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 22 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

जे. एल. एस. – 2- इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 100 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 20 – 22 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

नूरी (आईपीएल-81)- इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 120 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 12 – 15 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

मलिका (के -75)- इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 120 – 125 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 15 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

सपना- इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 135-140 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 20 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

पन्त एल – 234- इस तरह के किस्मों को पूरी तरह तैयार होने में 130-150 दिन का समय लगता है। और इसके एक हेक्टेयर के खेत से 18 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है।

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मसूर के खेत की तैयारी और खाद व उर्वरक की मात्रा

मसूर की खेती करने के लिए खेत की अच्छी तरह गहरी जुताई कर लेना चाहिए। और खेत में पानी डाल कर कुछ दिन के लिए छोड़ दिया जाता है। जब खेत की ऊपरी मिट्टी सुखी दिखाई देने लगे तब रोटावेटर की मदद से खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर लेना चहिए।जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। और खेत में पाटा लगा कर खेत को समतल बना लिए जाता है। मसूर के बीज की बुआई समतल खेत में की जाती है। मसूर की अच्छी उपज के लिए फसल को उचित मात्रा में खाद की आवश्यकता होती है। इसलिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सिंचित जगह पर 40 KG सल्फर, 20 KG नाइट्रोजन और 20 KG पोटाश को बीज बुआई के समय डाला जाता है। इसके अलावा असिंचित जगह पर 30 KG फास्फोरस, 15 KG नाइट्रोजन, 10 KG सल्फर और 10 KG पोटाश को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज की बुआई के समय डाला जाता है। यदि भूमि में जिंक सल्फेट की कमी पाई जाती है तो 25 KG जिंक सल्फेट को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अन्य उर्वरक के साथ छिड़काव किया जाता है।

मसूर के बुआई का सही समय और तरीका

मसूर की खेती करने के लिए बीज की मात्रा बुआई के समय पर निर्भर करता है। तो एक हेक्टेयर के खेत के हिसाब से समय पर बुआई करने वाले 32 kg बीज और देर से बुआई करने वाले 55kg बीज की आवश्यकता होती है। बीज को खेत में लगने से पहले बाविस्टिन या थाइरम से उचित मात्रा में उपचारित किया जाता है। इसके बाद बीज को 5MG राइजोबियम कल्चर और 10MG पीएसबी कल्चर से 1kg के बीज के हिसाब से बीज को उपचारित कर छायादार स्थान पर सुखा कर बुआई करना चाहिए। 

मसूर की खेती | Lentil cultivation | मसूर की खेती से लाभ

बीज को शाम के समय में बुआई करना अच्छा होता है। बीज को खेत में 2 तरीके से बुआई की जाती है। केरा पोरा विधि से और ड्रिल विधि द्वारा। इसके बाद बीज को 5MG राइजोबियम कल्चर और 10MG पीएसबी कल्चर से 1kg के बीज के हिसाब से बीज को उपचारित कर छायादार स्थान पर सुखा कर बुआई करना चाहिए। 

बीज को शाम के समय में बुआई करना अच्छा होता है। बीज को खेत में 2 तरीके से बुआई की जाती है। केरा पोरा विधि और ड्रिल विधि द्वारा किया जाता है। केरा पोरा विधि द्वारा खेत में पोरा चोंगा लगाकर एक कतार बनाई जाती है और इस कतार में बीज की बुआई की जाती है। ड्रिल विधि द्वारा बीज को बुआई करने के लिए खेत में 30cm की दूरी रखते हुए पंक्ति को तैयार किया जाता है। और बीज को ड्रिल की सहायता से भूमि में 3 से 4 CM गहराई में बीज की बुआई की जाती है। 

मसूर की खेती करने के लिए मसूर के पौधे की सिंचाई 

मसूर के फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि इसके पौधे को सुखा सहने की शक्ति होती है। ऐसे सिंचित जगह पे मसूर के फसल में 1 से 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली सिंचाई 45 से 55 दिन के बाद की जाती है। और जब फलियों में जब दाने आने लगते है तब दूसरी सिंचाई की जाती है। इस दौरान खेत की अच्छी तरह ध्यान रखना होता है जिससे की पानी खेत में एकत्रित नही हो सके। और सिंचाई के लिए किसान भाई स्प्रिंकल विधि का उपयोग कर सकते है। 

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मसूर के पौधे से खरपतवार का नियंत्रण 

मसूर के पौधे को खरपतवार से बचाना अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है। अगर सही समय पर खरपतवार पर नियंत्रण नहीं किया गया तो उपज में काफी प्रभाव पड़ता है। मसूर के फसल से खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी का उपयोग किया जाता है। इसकी पहली गुड़ाई 50 दिन के बाद की करनी होती और जब खेत में खरपतवार दिखाई देने लगे तब करनी चाहिए। और अगर आप रसायन विधि से खरपतवार नियंत्रित करना चाहते है तो पेन्डीमेथलीन 30 ई0सी0 का छिड़काव उचित मात्रा में कर सकते है। 

मसूर के पौधे में लगने वाले मुख्य रोग 

  • जड़ सडन
  • कालर राट या पद गलन
  •  गेरूई रोग

इन रोग से पौधे को बचाने के लिए सही समय पर और उचित मात्रा में रोग की पहचान करके दावा का छिड़काव करना चाहिए।

मसूर की कटाई और उपज

मसूर के पौधे को पूरी तरह तैयार होकर 110 से 140 दिन के बाद पैदावार देना शुरू कर देते है| इसकी कटाई फ़रवरी से मार्च महीने  के बीच की जाती है| जब इसके पौधों पर लगे फूल पीले और फलिया भूरे रंग की ही जाति है। तो उस दौरान पौधों की कटाई की जाती है| एक हेक्टेयर के खेत से 30 क्विंटल तक आसानी से उपजाया जाता है और 25 क्विंटल तक भूसा भी आसानी से किसान भाई को प्राप्त हो जाती है।

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