आलु की खेती | Farming of potato

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको आलु की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से आलु के उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, आलु की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, आलु की मात्रा क्या होनी चाहिए, आलु की बुआई कब करनी चाहिए, आलु के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, आलु के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए चीजप्रैक्टिकली बताऊंगा।

आलु की खेती | Farming of potato


किसान भाई धान की कटाई के बाद ही आलु की बुआई शुरू कर देते है । आलु की खेती सब्जी के रूप में की जाने वाली फसल है । आलु की खेती में भारत विश्व के तीसरे स्थान पी आते है । आलु की खेती भारत में सभी जगह की जाती है । भारत में आलु को बहुत ज्यादा पसंद किए जाने वाले सब्जी में से एक है । यह एक ऐसी सब्जी है जिसे किसी भी सब्जी के साथ मिला कर बनाया जाता है । आलु को खाद्य पदार्थ के साथ सेवन से हमारे शरीर को बहुत सारे पोशाक तत्व विटामिन बी, विटामिन सी,  कैल्शियम, फासफोरस और आयरन जैसे पोशाक तत्व मिलते है। आलु को केवल सब्जी में ही नहीं बल्कि बहुत सारे खाने के रूप भी किया जाता है जैसे - आलु चिप्स, फ्रेंच फ्राइज, समोसा, आलु टिक्की, आलु बिस्कुट और बहुत सारे चीज़े है जिसके वजह से बाजार में आलु की मांग भी बहुत ज्यादा होता है । जिससे किसान भाई को बहुत अच्छा मुनाफा मिलता है। इसलिए अगर आप भी आलु की खेती करने के वारे में सोच रहे है तो इस लेख से आपको आलु की खेती से सम्बंधित हर एक जानकारी आपको मिलेगी।

आलु की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, और तापमान

आलु की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी मिट्टी के जरूरत होती है। जिसका P.H. मान सामान्य होना चाहिए जिसमे आलु की खेती आसानी से की जा सके । आलु की खेती के लिए समशीतोष्ण  वाले जलवायु की आवश्यकता होती है। और आलु की खेती के लिए पर्याप्त तापमान दिन के समय में 30-35 डिग्री सेंटीग्रेट और रात के समय में 18-21 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक न हो

:- आलू की मुख्य वैरायटी

  •  लेडी रोसैट्टा
  •  कुफरी ज्योति 
  •  कुफरी लवकर
  •  कुफरी चंद्रमुखी
  •  जे. ई. एक्स. 166 सी
  •  कुफरी अशोक
  •  जे एच- 222


आलु की खेती | Farming of potato

:- लेडी रोसैट्टा

इस तरह के आलु के किस्में को पंजाब और गुजरात में अत्यधिक उपजाया जाता है । इसके पौधे सामान्य आकार के होते है जिसको पूरी तरह तैयार होने में 120-130 दिन का समय लगता है और इससे प्रति हेक्टेयर 60-65 टन के आसपास तक उपजाया जा सकता है ।

:- कुफरी ज्योति

इस तरह के आलु के किस्में को पर्वतीय क्षेत्र में उगाया जाता है इसकी बुआई के 125-130 दिनों के बाद उत्पादन होना शुरू होता है। लेकिन इस तरह के आलू के किस्में मैदानी क्षेत्र में केवल 90-100 दिनों का ही समय लगता है तैयार होने में। इससे प्रति हेक्टेयर से 180-250 क्विंटल तक उपज होता है।

:- कुफरी लवकर

इस तरह के आलु के किस्में को सबसे ज्यादा महाराष्ट्र उगाया जाता है। इसकी बुआई के 2 से 3 महीने के बाद से उत्पादन होना शुरू होता है।  इससे प्रति हेक्टेयर से लगभग लगभग 280 क्विंटल तक उपज होती है।

 :- कुफरी चंद्रमुखी

इस तरह के आलु के किस्में को अगेती फसल के रूप में उगाया जाता है।  इसकी बुआई के 90-100 दिन के बाद से उत्पादन होना शुरू होता है। इससे प्रति हेक्टेयर से लगभग लगभग 250 क्विंटल तक उपज होती है। इन पौधों में पछेती अंगमारी रोग नहीं लगते है।

:- जे. ई. एक्स. 166 सी 

इस तरह के आलु के किस्में को उत्तरी राज्यों में अत्यधिक उगाया जाता है। इस तरह के पौधों को फसल देने में लगभग लगभग 80-90 दिनों का समय लगता है। और इससे प्रति हेक्टेयर से लगभग लगभग 280-300 क्विंटल तक उपज होती है।

:- कुफरी अशोक

इस तरह के आलु के किस्में को मैदानी क्षेत्र में उगाया जाता है। इस तरह के पौधों को तैयार होने में लगभग लगभग 80-85 दिन का समय लगता है। और इससे प्रति हेक्टेयर से लगभग लगभग 250-300 क्विंटल तक उपज होती है। इस तरह के पौधे में झुलसा रोग नहीं लगता है

:- जे एच- 222

इस तरह के आलु के किस्में को जवाहर नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के किस्में आलू की संकर किस्म है। इसको पूरी तरह से तैयार होने में लगभग लगभग 90-100 दिन का समय लगता है। और इससे प्रति हेक्टेयर से लगभग लगभग 250 क्विंटल तक उपज होती है। 

आलु की खेती | Farming of potato


:- आलू की खेती करने के लिए खेत की तैयारी और उर्बरक की मात्रा 

आलू की खेती करने के लिए खेत में भुरभुरी मिटटी होना जरुरी होता है। इसलिए मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की अच्छी तरह 2 से 3 वार जुताई कर के कुछ दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दे और फिर उसमे खाद के रूप में 1 से 2 गाड़ी पुराण गोवर या फिर वर्मी कम्पोस्ट को डाल कर फिर एक वार जुताई कर दें जिससे मिट्टी और गोवर दोनों अच्छे से मिल जाये। फिर खेत में पानी डाल दे और जब खेत का पानी मिट्टी के ऊपर से सुखी दिखाई देने लगे तब उसमे एक बोरा डी.ए.पी. डालकर जुताई कर दें।  फिर खेत में  रोटावेटर लगा कर मिटटी को भुरभुरा बना लिया जाता है। और आलू की बुआई के लिए मेड़ को तैयार कर लिया जाता है। इसके अलावा जब पौधे में विकास होने लगता है तब उस समय 25kg यूरिया खाद को सिंचाई के समय देना होता है।

:- आलू की बुआई का सही समय और तरीका 

आलू की बुआई रबी फसल के साथ किया जाता हैं अक्टूबर और नवंबर महीने के मध्य तक आलू के कांड की बुआई कर देना अच्छा मन जाता है।  लेकिन आलू की बुआई से पहले इंडोफिल को उचित मात्रा में पानी में घोल कर के आलू के कन्द को 15 से 20  मिनट तक दाल कर रखा जाता है फिर आलू के कन्द की बुआई की जाती है। एक हेक्टेयर खेत में आलू की फसल को लगाने में लगभग लगभग 20 से 30 क्विंटल आलू के कन्द की आवश्यकता होती है। आलू की बुआई करने के लिए खेत में एक फिट की दुरी बनाते हुई मेड़ को तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद आलू के कन्द को 25 से 30CM की दुरी रखते हुई 8 से 10CM की गहराई के साथ बुआई की जाती हुई।
आलु की खेती | Farming of potato


:- आलू के फसल से खरपतवार का नियंत्रण 

आलू के फसल में से खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक और रासायनिक बिधि का इस्तमाल किया जाता है। जिसमे प्राकृतिक बिधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई की जाती है। आलू के फसल में काम से काम दो से तीन वार तक निराई – गुड़ाई की जाती है।  आलू के बुआई के 20 से 30 दिन बाद पहली गुड़ाई की जाती है और फिर 20 से 25 दिन के अंतराल में गुड़ाई किया जाता है।

:- आलू के फसल से खरपतवार का नियंत्रण 

आलू के फसल में से खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक और रासायनिक बिधि का इस्तमाल किया जाता है। जिसमे प्राकृतिक बिधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई की जाती है। आलू के फसल में काम से काम दो से तीन वार तक निराई – गुड़ाई की जाती है।  आलू के बुआई के 20 से 30 दिन बाद पहली गुड़ाई की जाती है और फिर 20 से 25 दिन के अंतराल में गुड़ाई किया जाता है।

:- आलू की खुदाई, सफाई, उपज और कमाई 

आलू के फसल को पूरी तरह तैयार होने में लगभग 90 से 95 दिनों का समय लगता है। उसके बाद मिट्टी को खोद कर सरे आलू को मिट्टी से निकल लिया जाता है। मिट्टी से आलू को निकलने के बाद आलू को पानी से धो कर आलू के size के हिसाब से सब को अलग अलग कर लिया जाता है।  एक हेक्टेयर से 250 से 300 क्विंटल  तक उपज आसानी से हो जाता है। जिससे किसब भाई को आलू की एक फसल से 1.5 से 2 (डेढ़ से दो) लाख की कमाई आसानी से हो जाती है। बाजार में आलू का भाव 800 से 1200 रूपए प्रति क्विंटल होता है

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