दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको अरबी की खेती करने के वारे में सम्पूर्ण जानकारी step by step बताऊंगा की खेती में कोन से अरबी की उन्नत किस्म को लगाने चाहिए, अरबी की बुआई के लिए खेत को कैसे तैयार करनी चाहिए, अरबी के बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए, अरबी की बुआई कब करनी चाहिए, अरबी के फसल में सिंचाई कितनी करनी चाहिए, अरबी के फसल से रोग और खरपतवार को कैसे दूर करनी चाहिए सारी चीजे प्रैक्टिकली बताऊंगा
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अरबी की खेती से सम्बंधित जानकारी
अरबी के पौधें को सब्जी के रूप में उगाया जाता है। इसके पौधों में उत्पन्न होने वाला अरबी कंद के रूप में होता है इसलिए अरबी कंद श्रेणी में आता है। भारत में अरबी लगभग हर क्षेत्र में उगाया जाता है। इसके पौधे गर्मी और बरसात में अच्छे से बढ़ते हैं। अरबी को कच्चा नहीं खाना चाहिए क्योंकि कच्चे फलों में कुछ विषैले गुण होते हैं जो शरीर के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। ऐसे विषैले गुणों को पानी में डालकर भी ख़त्म किया जा सकता है। अरबी का उपयोग सब्जी होने के अलावा औषधीय प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है। इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां दूर हो जाती हैं, लेकिन अधिक मात्रा में अरबी का सेवन हानिकारक होता है।
इनके पौधों पर उगने वाली पत्तियों का आकार भी केले के पत्तों की तरह चौड़ा होता है, जिन्हें सूखने के बाद सब्जी और पकौड़े बनाकर खाया जा सकता है। सूखे कंदों से आटा बनाया जा सकता है। किसान अरबी को अंतरवर्ती फसल के रूप में उगा सकते हैं, जिससे उन्हें एक ही समय में दो फसलों से लाभ मिल सकता है। यदि आप भी अरबी उगाने की योजना बना रहे हैं, तो यह लेख आपको अरबी कैसे और कब उगाएं इसकी जानकारी प्रदान करेगा।
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अरबी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
अरबी को सभी उपजाऊ मिट्टी पर उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए पर्याप्त जल निकास वाली भूमि की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उचित मानी जाती है। खेती के दौरान मिट्टी का पीएच 5.5 और 7 के बीच होना चाहिए। अरबी की खेती के लिए गर्म और समशीतोष्ण जलवायु उचित होती है।
यह पौधा बरसात और गर्मी के मौसम में अच्छे से बढ़ता है, लेकिन ज्यादा गर्मी या ठंड पौधे के लिए हानिकारक होती है। सर्दियों में पाला पड़ने से पौधों की वृद्धि रुक जाती है। अरबी के कंद केवल 35 डिग्री सेल्सियस के अधिकतम तापमान और 20 डिग्री सेल्सियस के न्यूनतम तापमान वाले वातावरण में ही अच्छी तरह से विकसित होते हैं। उच्च तापमान पौधों के लिए हानिकारक होता है।
अरबी की प्रमुख प्रजातियाँ
व्हाइट गौरैया
यह अरबी की प्रजाति रोपण के लगभग 180 से 190 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधों से निकलने वाले तने और कंदों में खुजली नहीं होती है। यह प्रजाति प्रति हेक्टेयर 170 से 190 क्विंटल तक उपज देती है।
पंचमुखी
यह अरबी की प्रजाति रोपण के 180 से 200 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके प्रत्येक पौधे में पांच मुख्य पुत्री गांठें होती हैं यही कारण है कि इस पौधे को पंचमुखी भी कहा जाता है। इस प्रजाति को अधिक उत्पादन के लिए उगाया जाता है और प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है।
मुक्ताकेशी
मुक्ताकेशी प्रजाति को कम समय में फसल उत्पादन करने के लिए उगाया जाता है। कंद लगाने के लगभग 160-170 दिन बाद पौधें कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके पौधों और पत्तियों का आकार सामान्य होता है। इस प्रजाति के पौधें प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक की उपज प्राप्त होती है।
आजाद अरबी 1
इस प्रजाति के पौधें को शुरुआती उत्पादन के लिए तैयार किया गया है, जो बुआई के लगभग 4 महीने बाद उपज देना शुरू कर देता है। इस प्रजाति की उपज 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और इसके पौधे सामान्य आकार के होते हैं।
नरेंद्र अरबी
यह अरबी प्रजाति कंद लगाने के 160-170 दिन बाद उपज देना शुरू कर देती है। इसका पूरा पौधा खाने योग्य है और पूरी तरह हरा दिखाई देता है। यह प्रजाति प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल की उपज देती है, इसका पौधा सामान्य आकार का होता है।
इसके अलावा अरबी की कई प्रजातियाँ विकसित की गई हैं, जिनकी पैदावार स्थान और जलवायु के आधार पर अलग-अलग होती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: - पंजाब अरबी 1, सहर्षमुखी कदमा, फैजाबादी, काका कंचु, अहिना, सतमुखी, ए. एन. डी. सी. 1, 2, 3, सी. 266, पंजाब गौरिया, लोकल तेलिया, मुक्ता काशी, बिलासपुर अरूम, सफेद गौरिया, नदिया, पल्लवी, लाधरा और बंसी आदि |
अरबी के खेत की तैयारी और उवर्रक
अरबी की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है। ऐसा करने के लिए पहले हल से मिट्टी की गहरी जुताई करते हैं जिससे मिट्टी पलटी जाती है। इससे पुरानी फसलों के अवशेष पूरी तरह ख़त्म हो जाते हैं। जुताई के बाद खेत को कुछ देर के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि पर्याप्त धूप जमीन तक पहुंचे और मिट्टी में मौजूद कीट पूरी तरह से मर जाएं। फिर खेत को 15 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद और केंचुआ खाद खेत में डाला जाता है और उसे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिला दिया जाता है।
फिर खेत को कल्टीवेटर से एक कोण पर दो या तीन बार जुताई की जाती है। हालाँकि कई क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है तो इसके लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम पोटेशियम और 60 किलोग्राम फॉस्फोरस को अंतिम जुताई का साथ छिड़का जाता है। खेत में खाद डालने के बाद पानी दें और जुताई करें। यदि जुताई के बाद मिट्टी ऊपर सूखी दिखे तो खेत में रोटावेटर लगा दें और इससे दो या तीन बार तिरछी जुताई करें जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए। मिट्टी भुरभुरी होने के बाद उसने पता लगाकर समतल कर लें इससे जल भराव नही होगा। इसके अतिरिक्त पौधें के विकास के दौरान और खेत में सिंचाई के दौरान 20-25 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव करना चाहिए।
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अरबी के बीजों की रोपाई का सही समय और तरीका
अरबी के बीज कंद के रूप में लगाए जाते हैं। प्रति हेक्टेयर खेत में कंद लगाने के लिए लगभग 15-20 क्विंटल बीज की जरूरत होती है। यह मात्रा कंदों के आकार और रोपण विधि पर निर्भर करती है। रोपण से पहले कंदों को बाविस्टिन या रिडोमिल एमजेड-72 की उचित मात्रा से उपचारित किया जाता है। फिर कंदों को दो तरीकों से लगाया जाता है पहला, समतल भूमि में क्यारियों में और दूसरा खेत में मेड़ बनाकर। दोनों विधियों से कंदों को 5 सेमी की गहराई तक लगाया जाता है।
क्यारियों में रोपण करते समय अलग-अलग नालियों के बीच 60 सेमी की दूरी बनाए रखना जरूरी है। इसके अलावा आपको कंदों के बीच एक से डेढ़ फीट की दूरी बनाए रखनी चाहिए। मेड़ लगाने के लिए खेत में डेढ़ से दो फीट की दूरी रखते हुए नालीनुमा मेड़ तैयार की जाती है। कंद को इन मेड़ों के बीच खांचे में रखा जाता है और मिट्टी से ढक दिया जाता है। अरबी के कंदों की रोपाई के लिए जून और जुलाई सबसे अच्छे महीने हैं। गर्मियों में फसल प्राप्त करने के लिए कंद फरवरी-मार्च में लगाए जाते हैं।
अरबी के पौधों की सिंचाई
बरसात के मौसम में फसल प्राप्त करने के लिए रोपी गई फसलों को अधिक पानी देने की जरूरत होती है, क्योंकि इस अवधि के दौरान खेत को नमी की जरूरत होती है। इस कारण से पौधों को शुरुआत में सप्ताह में दो बार पानी देने की जरूरत होती है। इसके अलावा यदि कंदों को बरसात के मौसम में लगाया जाता है तो पौधों को प्रचुर मात्रा में पानी की जरूरत नहीं होती है। यदि समय पर वर्षा न हो तो पौधों को हर 20 दिन में पानी देना चाहिए अन्यथा वर्षा होने पर आवश्यकतानुसार ही पानी दें।
अरबी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण
अरबी के खेत में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों का उपयोग किया जा सकता है। हालाँकि प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करके खरपतवारों को नियंत्रित करना पौधों के लिए फायदेमंद है। मल्चिंग एक प्राकृतिक विधि है जिसमें कंदों को रोपने के बाद, नालियों को छोड़कर बाकी खेत को सूखी घास या पुआल से मल्च किया जाता है। इससे खेत में खरपतवार नही होंगे।
रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडामेथालिन की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर कंदों की रोपाई के तुरंत बाद खेत में छिड़काव करें।
अरबी के पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग तथा उसके रोकथाम
एफिड
एफिड, माहू और थ्रिप्स या तीनों एक ही प्रजाति के रोग हैं जो कीड़ों के रूप में पौधों के कोमल अंगों और पत्तियों को संक्रमित करके उनका रस चूस लेते हैं। इससे पौधें की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधे का विकास भी पूरी तरह से रुक जाता है। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए पौधों पर उचित मात्रा में क्विनालफॉस या डाइमिथियोट का छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा पौधों पर हर 10 दिन में नीम के तेल का छिड़काव किया जाता है।
पत्ती अंगमारी
इस प्रकार का रोग मुख्यतः पौधों की पत्तियों में देखा जाता है। यह रोग कवक के रूप में पौधों की पत्तियों को प्रभावित करता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर गोल भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं और जैसे-जैसे रोग का प्रभाव बढ़ता है, पूरी पत्ती काली पड़कर खराब हो जाती है और पौधे का विकास भी रुक जाता है और कंद छोटे ही रह जाते है। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए उन पर फेनामिडोंन, मेन्कोजेब या रिडोमिल एम जेड- 72 की सही मात्रा का छिड़काव करें।
गांठ गलन
गांठ जलन एक मृदा जनित रोग है। इस प्रकार का रोग पौधों की पत्तियों को प्रभावित करता है, जिससे पत्तियों पर काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं। रोग का प्रभाव बढ़ने पर पौधे की पत्तियाँ पीली पड़कर मर जाती हैं तथा पौधे की वृद्धि पूर्णतः रुक जाती है। कुछ समय बाद पूरा पौधा खराब हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए जिनेब 75 डब्ल्यू पी या एम 45 की सही मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करें।
कंद सड़न रोग
इस प्रकार का रोग पौधों पर कवक के कारण होता है। यह रोग खेत में अधिक एवं लम्बे समय तक नमी रहने के कारण होता है। यह रोग पौधों को किसी भी अवस्था में प्रभावित कर सकता है। इस रोग से प्रभावित पौधे पहले तो मुरझाने लगते हैं और कुछ समय बाद सूखकर पूरी तरह से मर जाते हैं। आप अपने खेतों में जलभराव को रोककर अपने पौधों को इस रोग से बचा सकते हैं। जल भराव की स्थिति में पौधे की जड़ों पर बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।
अरबी के कंदो की खुदाई, सफाई, उपज और लाभ
अरबी की विभिन्न प्रजातियों को तैयार होने में 170 से 180 दिन का समय लगता है। जब पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाएँ तो कंदों को खोद लिया जाता है। पौधों को खोदने के बाद उन्हें साफ पानी से धो लें। फिर कंदों को छांटा जाता है, छँटाई के दौरान मातृ और पुत्री को छाँटकर अलग कर दिया जाता है।
फसल की हरी पत्तियाँ भी बेची जा सकती हैं। प्रजातियों के आधार पर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र की उपज 180 से 200 सेंटीमीटर तक पहुँच जाती है। अरबी की बाज़ारी कीमत 15 रुपये से 20 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच है, जिससे किसान एक ही फसल से 3 से 4 लाख रुपये कमाकर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।
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